
नई दिल्ली। पिछले हफ्ते, वक्फ संशोधन विधेयक 2025 को संसद के दोनों सदनों में दो दिन की मैराथन बहस के बाद पारित कर दिया गया। अब देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। अधिकांश विपक्षी दल इन विरोध प्रदर्शनों का समर्थन कर रहे हैं और कुछ विपक्षी सांसदों ने इस विधेयक को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है। यह संभव है कि ये प्रदर्शन जल्द ही समाप्त हो जाएं, लेकिन यह भी उतना ही संभव है कि ये लंबे समय तक चलते रहें, जैसे नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह कानून असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 26 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में हस्तक्षेप करता है। यह अनुच्छेद किसी भी धार्मिक समूह या संप्रदाय को धार्मिक और परोपकारी उद्देश्यों के लिए संस्थाएं स्थापित करने और उन्हें संचालित करने, अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने, चल और अचल संपत्ति के स्वामित्व और अधिग्रहण का अधिकार, तथा कानून के अनुसार उस संपत्ति का प्रशासन करने का अधिकार देता है।
सरकार का तर्क है कि वर्तमान वक्फ अधिनियम में बदलाव इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि का कार्य पारदर्शी नहीं है, जिससे कई कानूनी विवाद उत्पन्न हुए हैं-खासकर इसलिए क्योंकि बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकते थे। गैर-मुस्लिमों की धार्मिक और अन्य संपत्तियां भी खतरे में थीं। इसके अलावा, इस विधेयक को कैथोलिक समुदाय के कुछ वर्गों का भी समर्थन प्राप्त है।
लेकिन असली मुद्दा विधेयक नहीं है। असली मुद्दा भारत की दूसरी सबसे बड़ी धार्मिक आबादी और सरकार के बीच लगभग पूर्ण रूप से टूट चुके विश्वास का है। सवाल यह है कि जब यह भरोसा टूट जाए तो कोई भी सरकार कैसे शासन चला सकती है या सामाजिक सौहार्द बनाए रख सकती है?