
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है और इस दिन विधि-विधान से मां दुर्गा की आराधना होती है। भक्त उन्हें भोग में मिठाई, फल और मालपुआ अर्पित करते हैं। मान्यता है कि मां कुष्मांडा की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। देवी पुराण के अनुसार, विद्यार्थियों को नवरात्रि में मां कुष्मांडा की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इससे उनकी बुद्धि का विकास होता है।
मां कुष्मांडा आठ भुजाओं वाली दिव्य शक्ति हैं, उन्हें परमेश्वरी का रूप माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने से सभी काम पूरे होते हैं और जिन काम में रुकावट आती है, वे भी बिना किसी बाधा के पूरे हो जाते हैं। मां कुष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को सुख और सौभाग्य मिलता है। देवी पुराण में बताया गया है कि विद्यार्थियों को नवरात्रि में मां कुष्मांडा की पूजा जरूर करनी चाहिए। मां दुर्गा उनकी बुद्धि का विकास करने में सहायक होती हैं।
देवी कुष्मांडा, दुर्गा मां का चौथा रूप हैं। देवी भागवत पुराण में उनकी महिमा का वर्णन है। माना जाता है कि उन्होंने अपनी हल्की मुस्कान से ब्रह्मांड बनाया था। इसलिए उन्हें कुष्मांडा देवी कहा जाता है। सृष्टि के आरम्भ में अंधकार था, जिसे मां ने अपनी हंसी से दूर किया। उनमें सूर्य की गर्मी सहने की शक्ति है। इसलिए, उनकी पूजा करने से भक्तों को शक्ति और ऊर्जा मिलती है।
मां कुष्मांडा का स्वरूप बहुत ही खास है। उन्हें दिव्य और अलौकिक माना जाता है। वह शेर पर सवार होती हैं। उनकी आठ भुजाएं हैं जिनमें अस्त्र होते हैं। मां कुष्मांडा हमें जीवन शक्ति देती हैं। मां कुष्मांडा शेर पर सवारी करती हैं। उनकी आठ भुजाओं में अलग-अलग चीजें हैं। इन भुजाओं में उन्होंने कमंडल, कलश, कमल और सुदर्शन चक्र पकड़ा हुआ है। मां का यह रूप हमें जीवन शक्ति प्रदान करने वाला माना गया है। मां का यह रूप हमें जीने की शक्ति देता है। मां कुष्मांडा का रूप बहुत ही दिव्य है। यह हमें शक्ति और प्रेरणा देता है।