
शेखावाटी अंचल में होली एक सुप्रसिद्ध लोक पर्व है तथा इस पर्व को क्षेत्र में पूरे देश से अलग ही ढंग से मनाया जाता है। उमंग व मस्ती भरे पर्व होली की शेखावाटी क्षेत्र में बसंत पंचमी के दिन से शुरुआत कर दी जाती है। क्षेत्र में होली के पर्व पर चंग की धुन पर गाई जाने वाली धमालों में यहां की लोक संस्कृति का ही वर्णन होता है। इन धमालों के माध्यम से जहां प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं को अपने प्रेम का संदेशा पहुंचाते हैं वहाँ श्रद्धालु धमालों के माध्यम से लोक देवताओं को याद कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं। धमाल के साथ ही रात्रि में नवयुवक विभिन्न प्रकार के स्वांग भी निकाल कर लोगों का भरपूर मनोरंजन करते हैं। गांवों में स्त्रियां रात्रि में चैक में एकत्रित होकर मंगल गीत, बधावे गाती हैं। होली के दिनों में आधी रात तक गांवों में उल्लास छाया रहता है।
उमंग व मस्ती भरे पर्व होली की शुरुआत तब होती है, जबकि बसन्त अपने पूर्ण यौवन पर होता है और बांसुरी की मदहोश करती धुनें और चंग की थाप पर मानव का मन-मयूर नाचने लगता है। होली नजदीक आने पर शेखावाटी में अंचल के गांव-गांव और ढाणी-ढाणी में ऐसा माहौल देखने को मिल रहा है। शेखावाटी की होली पूरे देश में प्रसिद्व है। फाल्गुन में सांझ ढलते ही धमाल सुनाई देने लगे हैं। चंग की थाप पर पांव थिरकने लगे हैं और बांसुरी की सुरीली आवाज कानों में मिश्री घोलने लगी है। होली नजदीक आने पर शेखावाटी में अंचल के गांव-गांव और ढाणी-ढाणी में ऐसा माहौल देखने को मिल रहा है।
शेखावाटी अंचल में होली पर कस्वों में विशेष रूप से गींदड़ नृत्य किया जाता है। गुजराती नृत्य गरवा से मिलता-जुलता गींदड़ नृत्य में काफी लोग विभिन्न प्रकार की चिताकर्षक वेशभूषा में नंगाड़े की आवाज पर एक गोल घेरे में हाथ में डंडे लिए घूमते हुए नाचते हैं तथा आपस में डंडे टकराते हैं। प्रारम्भ में धीरे-धीरे शुरू हुआ यह नृत्य धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ता जाता है। इसी रफ्तार में डंडों की आवाज भी टकरा कर काफी तेज गति से आती है तथा नृत्य व आवाज का एक अद्भुत दृश्य उत्पन्न हो जाता है जिसे देखने वाला हर दर्शक रोमांचित हुए बिना नहीं रह पाता है। होली के अवसर पर चलने वाले इन कार्यक्रमों से यहाँ का हर एक व्यक्ति स्वयं में एक नई स्फूर्ति का संचार महसूस करता है।
इन नृत्यों की लोक परम्परा को जीवित रखने के लिए क्षेत्र की कुछ संस्थाएं विगत कुछ समय से विशेष प्रयासरत हैं। झुंझुनू शहर में सद्भाव नामक संस्था गत 18 वर्षों से होली के अवसर पर चंग, गींदड़ कार्यक्रम का आयोजन करती आ रही है, जिसे देखने दूर-दराज गांवों से काफी संख्या में लोग आते हैं। झुंझुनू, फतेहपुर शेखावाटी, रामगढ़ शेखावाटी, मण्डावा, लक्ष्मणगढ़, चूरू, बिसाऊ, लक्ष्मणगढ़ कस्बों का गींदड़ नृत्य पूरे देश में प्रसिद्ध है। इसी कारण चंग व गीन्दड़ नृत्य का आयोजन शेखावाटी से बाहर अन्य प्रान्तो में भी होने लगा है। धुलंडी के दिन इन नृत्यों का समापन होता है।
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में हर मोहल्ले में अपनी चंग पार्टी होती है। चंग शेखावाटी क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है। इसमें प्रत्येक पुरुष चंग बजाते हुये नृत्य करते हैं। यह मुख्यतरू होली के दिनों में किया जाता है। चंग को प्रत्येक पुरुष अपने एक हाथ से थाम कर और दूसरे हाथ से कटरवे का ठेका बजाते हुए वृत्ताकार घेरे में नृत्य करते हैं। घेरे के मध्य में एकत्रित होकर धमाल और होली के गीत गाते हैं। होली के एक पखवाडे पहले गींदड शुरू हो जाता है। जगह- जगह भांग घुटती है। हालांकि अब ये नजारे कम ही देखने को मिलते हैं। जबकि, शेखावाटी में ढूंढ का चलन अभी है। परिवार में बच्चे के जन्म होने पर उसका ननिहाल पक्ष और बुआ कपडे और खिलौने होली पर बच्चे को देते हैं।
शेखावाटी अंचल के हर गांव कस्बे में रात्रि में लोग एकत्रित होकर चंग की मधुर धुन पर देर रात्रि तक धमाल गाते हुए मोहल्लों में घूमते रहते हैं। होली के अवसर पर बजाया जाने वाला चंग भी इसी क्षेत्र में ही विशेष रूप से बनाया जाता है। चंग की आवाज तो ढोलक की माफिक ही होती है, मगर बनावट ढोलक से सर्वथा भिन्न। चंग ढोलक से काफी बड़ा व गोल घेरे नुमा होता है। होली के प्रारम्भ होते ही गांवों में लोग अपने-अपने चंग (ढप) संभालने लगते हैं। होली चूंकि बसंत ऋतु का प्रमुख पर्व है तथा बसंत पंचमी बसंत ऋतु प्रारम्भ होने की द्योतक है। इसलिए इस अंचल में बसंत पंचमी के दिन से चंग बजाकर होली के पर्व की विधिवत शुरुआत कर दी जाती है।
लोगों का कहना है कि अगर होली के त्यौहार से लोक वाद्य चंग और धमाल को निकाल दिया जाये तो होली का त्यौहार बेजान हो जायेगा। ग्रामीण चंग और धमाल को होली पर्व की आत्मा मानते है। आज ये परम्परा धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। पहले यहां होली का त्योहार प्यार के साथ मनाया जाता था, सब साथ मिलकर चंग पर धमाल गाते थे लेकिन आजकल वो सब खत्म सा हो गया है। क्षेत्र में बढ़ते शराब के प्रचलन के कारण लोग रात्रि में घरों से बाहर निकलने से डरने लगे हैं तथा गांवों में भी पहले की तरह सामंजस्य नहीं रहा। इसके अलावा ऑडियो कैसेटों के बढ़ते प्रचलन से भी इस लोक पर्व को कृत्रिम सा बना दिया है। कैसेटों की वजह से पर्व की मौलिकता ही समाप्त होने जा रही है। यदि समय रहते होली पर व्याप्त हो रही कुरीतियों व शराब के चलन की समाप्ति का प्रयास नहीं किया गया तो यह पर्व अपना मूल रूप खो बैठेगा।
While groups like MRB can challenge racist ideas of "racial purity" and offer support to someone raising a mixed-race child in the Western world, it's clear that there is a fine line between support and obsession, fascination and fetishization. If there are some themes, it is that when dancing simple steps, the dancers dance in closed hold, while when making walking turns, the dancers open to a two-hand open hold with both hands held overhead when making the turn.