

संजय राजन
शाहजहांपुर पुलिस ने बड़ी ही आसानी से कह दिया कि कस्बा कांठ के मोहल्ला सेरान निवासी ताहिर अली की आग लगाने से राजधानी के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में इलाज के दौरान मौत हो गई। हैरत है कि यह कहने और छह लोगों के एक हंसते-खेलते परिवार को बेसहारा करने और अर्श से उठाकर फर्श पर फेंकने के आरोपी पुलिस प्रशासन व घटिया सिस्टम की हलक तक नहीं सूखी। जिले में शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने पुलिस की यह कथा मान न ली हो, इसमें ताहिर के बीवी व बच्चे भी शामिल थे। दरअसल यह सिस्टम द्वारा हत्या की पटकथा थी, जो पुलिस ने अपने कप्तान अशोक कुमार मीणा के नेतृत्व में लिखी थी, पर इसे जामा पहनाया जा रहा था आत्महत्या का। हालात चीख-चीख कर कह रहे हैं कि ताहिर का कत्ल हुआ है।
सुनने में लगता है कि मुंबई की किसी मसाला फिल्म की बात हो रही है, पर यहां बात हो रही है मुंबई में ठीक-ठाक कमाई कर रहे ताहिर की। दूसरों को कठघरे में खड़ी करने वाली पुलिस आज खुद कठघरे में है। यह दीगर बात है कि कुछ अनुत्तरित सवाल हैं, जो परेशान कर रहे हैं। जैसे एसपी सिटी शाहजहांपुर संजय कुमार केजीएमयू क्यों आए थे, उनकी रवानगी कहां दर्ज थी और किसके कहने पर आए थे? पीड़िता ने बताया कि सवाल-जवाब के क्रम में एसपी ने कहा कि ज्यादा बोल रही हो, ऐसी फाइलें हम बंद कर देते हैं। कांठ के ताहिर अली का न कोई आपराधिक रिकार्ड था और न ही वह आतंकी था, फिर भी शव मोहल्ले तक पहुंचाने में पुलिस ने इतना ताम-झाम क्यों किया? शव वाहन के साथ पुलिस, रास्ते में पुलिस, उसके घर पर पुलिस व गांव में पीएसी क्यों तैनात की गई थी?
व्यवस्था सवाल उठाती है कि ऐसा क्या खास था ताहिर के मरने में? जवाब है कि एसपी अपनी नौकरी बचा रहा था, क्योंकि कई माह दौड़ाकर इतना परेशान कर दिया था कि उसने एसपी ऑफिस में ही पांच मार्च 2024 को आग लगा ली थी। उसका कुसूर सिर्फ इतना था कि ड्राइवर उमेश तिवारी की बात पर भरोसा किया था और उसको एक के बाद दूसरी पिकअप गाड़ी चलाने व चलवाने के लिए खरीद दी थी। दोनों के बीच में रेट तय हुआ था, जिसके मुताबिक शुरू में कुछ बार कुछ हजार रुपये उमेश ने दिए भी थे, फिर नीयत खराब होते ही पैसे देने बंद कर दिए और गाड़ियां धोखे से अपने नाम करवाने के लिए आरटीओ दफ्तर के दलालों के चक्कर में घूम रहा था।
विधवा महिला कहती हैं कि दबंग 12 लाख बकाया देने के बजाय गाड़ियां ही उठा ले गया, जिससे किस्तें नहीं जा पा रही थीं। एसपी मीणा ताहिर के जिंदा रहते खुद के जिंदा होने का सुबूत नहीं दे पाए, मरने के बाद गाड़ियां सुपुर्द कर दीं। यही इंसाफ पुलिस ने पहले कर दिया होता तो आग क्यों लगानी पड़ती? उन्होंने कहा कि पुलिस के लिए पैसा हंसते-खेलते परिवार के मुखिया की जान से ज्यादा प्यारा था। मुखिया को मारने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे पूरे परिवार की ही हत्या कर दी गई हो एसपी के नेतृत्व में। उसने सवाल किया कि दरवाजे से किस अपराध में एसएचओ रवींद्र कुमार गाड़ियां उठा ले गया था, जिसका जवाब कप्तान तक के पास नहीं है। उसके बाद से ही पुलिस अधिकारियों और कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे थे वह। पुलिस ने गाड़ियां छिपा दी थीं व बराबर एसपी और एसएचओ तत्कालीन आईजी बरेली को गुमराह कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि आत्मदाह के प्रयास में सिर्फ पैर जले थे, केजीएमयू में ताहिर ठीक हो रहा था। सीएम पोर्टल पर भेजी शिकायत में मैनाज बानो ने कहा है कि पति ताहिर के नाम दो महिंद्रा पिकअप यूपी 27 एटी 8561 क्लोज बाडी व यूपी 27 बीटी 1742 हैं। उक्त वाहन डेढ़ व दो वर्ष से उमेश तिवारी पुत्र सुशील चंद्र तिवारी निवासी ग्राम नगरिया वहाब (चिनौर) थाना सदर बाजार को किराए पर दिए थे। उमेश ने शुरुआत में किराया दिया, परंतु बाद में देना बंद कर दिया। इसके बाद पति ने मुंबई से आकर अधिकारियों की परिक्रमा शुरू की। नौ अक्टूबर 2023 को पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र दिया, फिर 12 को आईजीआरएस किया। पुलिस अधीक्षक के आदेश पर 13 को दोनों वाहन बरामद कर चौकी में खड़े कर दिए गए।
16 तारीख को स्वामित्व के सब कागज दिखाकर दोनों वाहन घर ला रहे थे कि तभी कैंट तिकोनिया में उमेश तिवारी व उसके बेटे-बहनोई व तीन अज्ञात लोगों ने घेरकर असलहे लगा दिए। गाली-गलौज के बाद मारपीट की। गाड़ियां छीनने की कोशिश की, पर सरताज ड्राइवर और राहगीरों की मदद से किसी तरह बचकर भागने में सफल रहे। इस पर उमेश ने धमकी दी कि तुम्हारी मौत मेरे हाथों पक्की है। पति गाड़ियां घर के बाहर खड़ी कर जरूरी काम से मुंबई चले गए। इसी डेढ़ माह के वक्त में उमेश ने कोई सिफारिश लगवाकर सदर बाजार थाना प्रभारी रवींद्र कुमार को अपने पक्ष में मिला लिया। उनके कहने पर चौकी इंचार्ज व गाड़ी भर पुलिस के साथ उमेश पहुंचा व घर में घुसकर गंदी गालियां देने व मारपीट कर जबरन गाड़ियां उठा ले गया व कैंट चौकी में खड़ी कर दीं। इस बात की कभी रिपोर्ट तक नहीं लिखी गई। उसके बाद दोनों गाड़ियां वहां से हटवाकर सवानगर चौकी पर खड़ी कर दी गई, जिसकी फोटो व वीडियो क्लिप भी है।

प्रार्थिनी व उसके पति सदर बाजार जाकर प्रभारी रवींद्र से मिले और गाडियां देने को कहा तो वह बोले कि गाड़ियां न्यायालय के आदेश पर दी जाएंगी। उसके बाद से कोर्ट दौड़ने लगे। दो फरवरी 2024 को सीजेएम को प्रार्थना पत्र दिया। चार दिन बाद की डेट लग गई। इस पर प्रभारी ने सवानगर चौकी से गाड़ियां हटवाकर छिपा दीं। इस पर पति आठ व 28 फरवरी को बरेली जाकर आईजी से मिलकर प्रार्थना पत्र दिया और आपबीती सुनाई, तब वीडियो व फोटो देखने के बाद उन्होंने सदर प्रभारी रवींद्र को फोन किया और कहा कि गाड़ियां थाने में खड़ी कर दो, जिसकी होंगी, वो रिलीज करा लेगा। प्रभारी ने उन्हें गुमराह किया तो आईजी ने जिले के बाहर बीसलपुर थाने जांच भेज दी।
इस दौरान मुंबई का काम बंद करने के बाद आर्थिक हालत खराब होती गई, फिर भी ताहिर सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाते रहे और विपक्षी दबाव डालते रहे कि उमेश पैसे वाला है। वह बेइज्जती से चिढ़ गया है, उससे लड़कर जीत नहीं पाओगे। गाड़ियां उसके नाम कर दो। पति ने एसपी से जाकर कहा कि उसकी रोजी-रोटी हैं गाड़ियां। दिला दीजिए, नहीं तो बच्चे भूखे मर जाएंगे। इस पर एसपी ने कहा कि गाड़ियां उमेश के नाम कर दो नहीं तो किसी केस में फंसाकर अंदर कर देंगे। वाकई बीवी-बच्चे तड़प-तड़प कर भूखे मर जाएंगे और तुम जेल में सड़ जाओगे। कई बार अधिकारी का रवैया देखने के बाद पति बहुत टूट गए थे। दूसरी ओर उमेश, उसके लड़के व बहनोई एवं शहजाद अहमद पुत्र मकबूल खां आदि गुंडे लगातार जान से मारने की धमकी दे रहे थे। बदमाश बहारुद्दीन से भी फोन करवा कर धमकी दी। ऐसी दर्जनों बातों की रिकॉर्डिंग पीड़ित परिवार के पास हैं।
पति फिर एसपी मीणा के पास गए तो वह बोले कि इसे जेल में डालो, रिपोर्ट हम लिखा रहे हैं। इसके बाद ताहिर के कुछ भी समझ में नहीं आया। दिमाग सुन्न हो गया और इन्हीं बातों से आहत होकर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में ही पांच मार्च को आग लगा ली थी। उन्हें आनन-फानन केजीएमयू लखनऊ रेफर कर दिया गया, जहां वह ठीक हो रहे थे, पर 11वें दिन मौत की बात बताई गई। उन्होंने कहा कि एसआई अमित चौहान के कारण अंत में वह तीन दिन पति से मिल भी नहीं सकीं। बराबर हत्या की बात करते हुए उन्होंने सवाल किया कि तीन दिन बाद शव क्यों दिया गया? अंदर नहीं जाने दिया व देखने नहीं दिया। इसके बड़े पुलिस अधिकारी का रिश्तेदार केजीएमयू में था, वह आता भी था।
जलने के बाद उन्होंने जो बयान शाहजहांपुर में दिया था, वही उनके लिए काल बन गया, जिन-जिन पुलिसकर्मियों की मिलीभगत की वजह से यह हुआ, उनका नाम घायलावस्था में ताहिर ने लिया था, उनके खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। न रिपोर्ट दर्ज हुई, पर सिस्टम द्वारा हत्या के बाद गाड़ियां थाने में खड़ी कर दी गई। वह कहती हैं कि यही काम अगर शाहजहांपुर पुलिस ने पहले कर दिया होता तो हंसता-खेलता परिवार बर्बाद न होता और पति की जान भी बच जाती। साथ ही छोटे-छोटे चार बच्चे भी अनाथ न होते और न ही परिवार भुखमरी की कगार पर आता। प्रार्थिनी चाहती है कि जिन्होंने यह सब किया है, उन सभी पुलिसकर्मी व माफियाओं पर हत्या की रिपोर्ट दर्ज करके सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।
अनाथ बच्चों के लिए ‘अंबर’ बनीं अंबर

शाहजहांपुर के ताहिर के कथित कत्ल के बाद जब मामला ऑल इंडिया मुस्लिम ख्वातीन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष व समाजसेविका शाइस्ता अंबर के पास पहुंचा तो उन्होंने इंसाफ के लिए मुख्यमंत्री को पुरजोर पैरवी के साथ न सिर्फ पत्र लिखा, बल्कि अपना दर और पर्स दोनों खोलकर अनाथ बच्चों व उनकी मां की मदद की। उन्होंने भी पत्र में यही कहा कि दबंगों और सिस्टम द्वारा सालभर से अधिक समय से पीडित ताहिर को आत्मदाह के लिए मजबूर किया गया। उनकी मृत्यु के बाद मां एवं बच्चे न्याय मांगने के लिए नंगे भूखे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पूरा जाड़ा उन सबने कम कपड़ों व चप्पलों के बिना कैसे काटा है, वे ही जानते हैं? यह जांच का विषय है कि स्थानीय पुलिस किसके दबाव में काम कर रही थी?
ऐसे में क्यों न किसी विभाग से जांच करवा कर पीड़ित परिवार के साथ इंसाफ किया जाए ताकि लोगों का न्याय से भरोसा न उठने पाए। दूसरे, कहा भी जाता है कि देर से मिला न्याय, न्याय कम और अन्याय ज्यादा होता है। अमानत में खयानत के इस केस के अवलोकन का आपसे अनुरोध है। 16 अक्टूबर 2023 को इसकी शिकायत थाना सदर की गई तो पुलिस ने दोनों गाड़ियां उमेश तिवारी के यहां छापामार कर बरामद की थीं और चोर को छोड़ दिया। यह बात भी पुलिस को कठघरे में खड़ी करती है। उसके बाद फिर ताहिर के घर से किस जुर्म में बीसियों पुलिस वाले गाड़ियां उठा ले गए?
अगर पुलिस की नीयत साफ थी तो आईजी से शिकायत के बाद गाड़ियों का स्थान क्यों बदला और तीसरी बार गुप्त स्थान पर क्यों भेजा? पूरे प्रकरण में पुलिस का रवैया विवादित और समझ से परे रहा है। पुलिस की ना फरमानी और ना समझी से किसी का घर उजड़ गया। किसी के छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो गए। वह कहती हैं कि नाइंसाफी की भी कोई तो हद होगी। एसपी ने अगर धमकी देने के बजाय फर्ज निभाने पर ध्यान दिया होता तो ताहिर आज जिंदा होता और उसके बच्चे अनाथ होने से बच जाते। उसे आत्मदाह के लिए पुलिस ने मजबूर किया था। इसके बाद मामला उमेश का न होकर पुलिस का हो गया था, क्योंकि जली हालत में ताहिर ने बयान दिया था, जो पूरे सिस्टम को हिलाकर रख देता इसीलिए पुलिस और अपराधियों के इस गठजोड़ ने मिलकर उसकी हत्या कर दी।
बेवा बहुत परेशान है और न्याय के लिए दर-दर भटक रही है। ऐसे में लोकप्रिय सरकार से ही अंतिम उम्मीद बची है कि बदमाशों को उनकी जगह पहुंचा कर पीड़ित परिवार के साथ न्याय करें। दबंगों के खुला घूमने से गरीब असहाय घर छोड़कर परेशान घूम रहे हैं, जिससे समाज में भय व्याप्त हो रहा है व सरकार की छवि धूमिल हो रही है। ऐसे में पूरे प्रकरण पर न्यायप्रिय दृष्टि डालते हुए निष्पक्ष जांच करवा कर नियमानुसार दोषियों को सजा दिलाने, पीड़िता-बच्चों को सुरक्षा व जीविका चलाने, शिक्षा की व्यवस्था सरकारी स्तर से कराने, हत्या का मुआवजा तथा मारा गया 12 लाख रुपया दिलाने की कृपा करें ताकि बैंक का हिसाब चुकता किया जा सके।
सबके अन्ना खन्ना का पन्ना ही रवन्ना
प्रदेश के वरिष्ठतम भाजपा नेता व कैबिनेट मंत्री सुरेश कुमार खन्ना के राज में शाहजहांपुर पुलिस जुटी है उल्टी गंगा बहाने में। छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय रहे खन्ना को दोस्तों में अन्ना (बड़े भाई) का दर्जा प्राप्त था। पहली बार इस युवा ने 1980 में लोकदल के टिकट पर सदर से चुनाव लड़ा, पर हार गए थे। उसके बाद लगे रहे और 1989 में भाजपा के टिकट पर सदर विधायक बने। उसके बाद से वह लगातार जीतते रहे हैं और रिकार्ड बनते रहे। किसी की आंधी हो या कोई तूफान आया हो या किसी का कोई अभियान हो, इन सब चीजों से बेअसर व बेखबर वह 2022 में नौवीं बार जीत हासिल करके सदन पहुंचे। उनसे पूछे बिना तो पार्टी छोटा-मोटा टिकट तक जिले में नहीं देती है।
ताहिर के परिजन भी कहते हैं कि जिले में उनके बिना पत्ता नहीं हिलता है। उनकी इच्छा ही जिले में सर्वोपरि होती है। खन्ना एक पन्ना (पेज) पर कुछ भी लिखकर दे दें तो पुलिस प्रशासन के लिए वही रवन्ना होता है। उससे इतर जाने के लिए प्रशासन को सौ बार सोचना होगा। दूसरे, मामला सदर थाने का था। परिजन ने लिखित में कहा है कि आरोपी गुंडा सत्ता पक्ष का कार्यकर्ता है। दबंग और हत्यारों की मदद का कोई प्रमाण तो उनके पास नहीं है, पर पीड़ित होने के बावजूद हमारी मदद नहीं की। ऐसे में वह किसी भी कीमत पर यह तो कह ही नहीं सकते कि उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है। पूरे प्रकरण में चौकी, थाना व अधिकारी स्तर से जो अराजकता की हदें पार की गई हैं, वे किसी की शह के बिना हो ही नहीं सकतीं।
वे कहते हैं कि यह साबित करता है कि वह दबंगों के अन्ना हैं, जबकि पद व कद के हिसाब से उनके लिए सभी बराबर हैं। उन्हें तो राग-द्वेष और भेदभाव से परे रहकर स्वभावानुरूप हमारी मदद कर समाज के सामने सबका साथ, सबका विकास और छोटों पर बड़ों का हाथ की नजीर पेश करनी चाहिए थी। बेवा मैनाज बानो ने कहा कि हमारा तो विनाश हो गया। सबकुछ नष्ट हो गया। पांच लोगों का परिवार लेकर कहां जाऊं? हम तो बेसहारा हो गए। सबसे छोटा बच्चा डेढ़ साल का है। 16 साल की बड़ी बेटी अलीशा ने कहा कि दुश्मनों और पुलिस से दोनों डाला गाड़ी हासिल करने के लिए ऐसा कौन सा दर था, जहां-जहां पर पापा ने मत्था नहीं टेका। उसका इशारा न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका व पत्रकारिता की ओर था।
करीब एक साल दौड़ने, मजिस्ट्रेट के फैसले और आईजी बरेली के कहने के बाद भी जब लोकल पुलिस के कारण दो गाड़ियों का चैप्टर हमारे हक में बंद नहीं हुआ तो मजबूर होकर आग लगानी पड़ी इसीलिए कहा जाता है कि चारों खंभों से सुनवाई न होने पर मजबूरी में ही आदमी पांचवें रास्ते पर चला जाता है, नहीं तो भला शौकिया कौन आग लगाता है? दुर्भाग्य सिर्फ इतना है कि शिकायत तहसील व जिले से लेकर मुख्यमंत्री तक वाहे जहां कर लो, पर जांच लौटकर उसी चौकी में आनी है। इस दुष्चक्र से जब तक प्रदेश को नहीं निकाला जाएगा, तब तक पीड़ित ताहिर कोई न कोई रास्ता निकालते रहेंगे।
अफसोस होता है विधान भवन व लोकभवन के कोनों पर साल के 12 मास, जाड़ा-गर्मी व बरसात कंबल लेकर ड्यूटी देने वाले गठरी भर पुलिस कर्मचारियों को देखकर। मुख्यमंत्री के आठ साल के कार्यकाल में देखा जाए तो करीब दर्जन भर लोग विधान भवन के आसपास आकर उल्टे-सीधे काम कर चुके हैं। मुख्यमंत्री उक्त अवधि में सौ बार कह चुके हैं कि अगर नीचे सुनवाई हो रही है तो फिर इतने लोग राजधानी क्यों आ रहे हैं शिकायतें लेकर ? कई बार यह भी कहा है कि अगर कोई शिकायत लेकर लखनऊ आया तो जिले के अधिकारियों की खैर नहीं, पर बातें हैं, बातों का क्या? बातें तो होती ही हैं करने के लिए। बदले माहौल में मैनाज कहती हैं कि दबंगों सहित कप्तान व दरोगा पर भी हत्या का केस दर्ज होना चाहिए।
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