
शिल्पा सिंह
किसी भी विधा के साहसिक दृष्टांत के लिए न सात समंदर पार बहुत दूर जाने की जरूरत है और न ही आज के भारत में बड़ी से बड़ी बीमारी के इलाज के लिए। हमें ऊर्जा और संघर्ष की प्रेरणा देने के लिए आस-पास ही ढेर सारे लोग मौजूद हैं। बस, जरूरत है तो सिर्फ प्रेरणा लेने वाले की। निर्भर करता है कि कोई कुछ सीखना चाहता है या सिर्फ रोने का गाना गाकर समय गुजार कर सहानुभूति बटोरना चाहता है। समाज में एक वर्ग ऐसा भी है, जो रोना रोकर सिर्फ पैसा बटोरना चाहता है ताकि उसका आने वाला कल सुरक्षित हो जाए, परसों की चिंता वह कल कर लेगा। यहां प्रसंग कुष्ठ रोग व रोगियों के प्रति समाज के नजरिए का है। काका यानी कि अपने दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना की पत्नी, तारिका ट्विंकल खन्ना की मां, बड़े कलाकार अक्षय कुमार की सास व एक जमाने में बॉलीवुड की दिग्गज अदाकारा रहीं डिंपल कपाड़िया भी कभी कुष्ठ रोग से पीड़ित थीं। इसके बावजूद उन्होंने जिंदगी में जोरदार वापसी की और नई ऊंचाई हासिल की।
गौरतलब है कि एक-आध को छोड़ दिया जाए तो आज की तारीख में कुछ भी लाइलाज नहीं है। बस, जरूरत होती है मुट्ठी भर साहस व चुटकी भर संघर्ष की। इसी रास्ते को अपनाकर डिंपल के अलावा दो-दो वर्ल्ड कप जिताने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रिकेट स्टार युवराज सिंह ने शानदार वापसी की। सभी जानते हैं कि कैंसर हो गया था व दृढ़ इच्छाशक्ति से उन्होंने कैंसर को हरा दिया था। 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के खिलाफ डरबन में छह गेंद पर छह छक्के लगाने की घटना को दोनों देशों व दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों में भला कौन भूल सकता है? दोनों ने अपने कॅरियर में एक से बढ़कर एक बेहतरीन कीर्तिमान बनाए। एक ने 90 के दशक में कॅरियर शुरू कर लाखों दिलों पर करीब दो दशक तक राज किया तो दूसरे ने 21वीं सदी के करीब दो दशक तक ।
डिंपल आज भी इंडस्ट्री में एक्टिव हैं तो युवी भी किसी न किसी तरह क्रिकेट से जुड़े हुए हैं। वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ लीजेंड्स के रूप में बीते साल तीसरा खिताब भी वह भारत को दिला चुके हैं। माना कि यह आईसीसी प्रमाणित टूर्नामेंट नहीं था, फिर भी बात उनके अदम्य साहस व उत्कृष्ट नेतृत्व की हो रही है। बहुत कम लोग जानते हैं कि फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले दिग्गज एक्ट्रेस एक बार कुष्ठ रोग का शिकार हो गई थीं। खुद डिंपल ने कुछ समय पहले फिक्की के जयपुर चैप्टर में हिस्सा लेने के दौरान बताया था कि जब उन्हें यह बीमारी हुई, तब वह करीब 15 साल की रही होंगी। पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया था कि उन्हें तब पता भी नहीं था कि कुष्ठ रोग क्या होता है? लक्षण दिखाई पड़े तो सभी चिंता में पड़ गए थे, तभी किसी ने उनके पिता से कह दिया कि इस कारण डिंपल को स्कूल से निकाल दिया जाएगा।
इसी बीच राज कपूर से मिलने का मौका मिला, क्योंकि किसी ने उन्हें बताया था कि एक सुंदर लड़की तो है, पर उसे कुष्ठ रोग है। वह बॉबी के लिए हीरोइन खोज रहे थे। राज साहब ने पेपर में ऐड निकाला था। स्कूल में उसे देखा व ऑडिशन देने चली गई, पर पहली बार में रिजेक्ट हो गई थीं और बाद में सफल हुईं इसलिए बीमारी और असफलता आदि से कभी घबराना नहीं चाहिए। हौसले से हर परेशानी को मात दी जा सकती है। अब तो मेडिकल साइंस ने भी इतने दशक में बहुत तरक्की कर ली है, तब तो कतई नहीं घबराना चाहिए। बड़े-बुजुर्ग भी कहते रहे हैं कि हर मर्ज व समस्या की दवा धैर्य है इसलिए इंजेक्शन हो या रिजेक्शन डरें कतई नहीं।
अस्सी के दशक की एक लखनऊ आधारित मशहूर फिल्म के गाने के बोल हैं, मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए। इससे पहले भी हजारों बार बड़े-बुजुर्ग, साधु-संत, माता-पिता और गुरु उक्त लाइन बोलकर सामने वाले में जोश भरते रहे हैं। इसी लाइन पर चलकर अतीत में पोलियो को जड़ से मिटाने में देश को सफलता मिल चुकी है इसीलिए कहा जाता है कि कोई बड़ी चीज देश के तंत्रिका तंत्र को लांच करनी हो या किसी आतंकवाद, उग्रवाद व नक्सलवाद जैसी किसी बड़ी समस्या पर आखिरी हमला बोलना हो तो पोलियो रोधी मुहिम की तरह ही होना चाहिए, जब सिस्टम की मशीनरी एक दिन में देश के सुदूर कोने में स्थित गांवों तक पहुंचने और दो बूंद जिंदगी की पिलाने में सफल हो जाती थी। नारा था, एक भी बच्चा छूटा तो सुरक्षा चक्र टूटा। कोरोना काल में भी साहस व पूरे दम-खम के साथ इसी लाइन पर चलकर सफलता मिली थी।
अब उत्तर प्रदेश की सरकार भी इसी तर्ज पर जोर लगा रही है प्रदेश को कुष्ठ मुक्त बनाने पर। सीएम की मॉनीटरिंग का ही नतीजा है कि अभी तक 12 हजार से ज्यादा कुष्ठ रोगी चिन्हित किए जा चुके हैं और कुष्ठ व फाइलेरिया रोगियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने एवं इसे जड़ से खत्म करने के लिए मिशन मोड में काम करते हुए दो वर्ष से विशेष अभियान के तहत इलाज किया जा रहा है। इतना ही नहीं, उनके रहने और पौष्टिक आहार की भी समुचित व्यवस्था सरकार कर रही है। नॉन ट्रॉपिकल डिजीज यानी उपेक्षित ऊष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) दिवस पर जन जागरूकता के विविध कार्यक्रम हुए।
प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, चिकित्सा व परिवार कल्याण ने बताया था कि मुख्यमंत्री की मंशानुरूप प्रदेश से कुष्ठ रोग को जड़ से खत्म करने को स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान एवं कुष्ठ पखवाड़ा आयोजित किया जा रहा है। इसी के तहत आईएमए में विभिन्न जन जागरूकता कार्यक्रम हुए। डीजी हेल्थ ने एक बार फिर साफ किया कि कुष्ठ रोग छुआछूत की बीमारी नहीं है। राज्य नोडल अधिकारी ने कहा कि हमें रोगी से नहीं, रोग से बचना चाहिए। कार्यक्रम में कुष्ठ रोगियों को कंबल, चप्पल व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। कुशीनगर की रोगी चैंपियन नलिनी को ससम्मान मंच पर स्थान दिया गया तो बेहतर कार्य करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को सम्मानित किया गया।
आईएमए लखनऊ, रोटरी इंटरनेशनल और इनरव्हील के सहयोग से नुक्कड़ नाटक और जादू के शो के जरिए लोगों को कुष्ठ रोग के प्रति जागरूक किया गया। संस्था सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) के सहयोग से यूपी राजकीय सैनिक स्कूल की छात्राओं ने नुक्कड़ नाटक का मंचन किया। इसमें 10 फरवरी से शुरू होने वाले सर्वजन दवा सेवन (आईडीए) की जानकारी दी गई। एनटीडी दिवस पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सरोजनीनगर और उच्च प्राथमिक विद्यालय माती में फाइलेरिया जागरूकता कार्यक्रम में सीएचसी अधीक्षक डॉ. चंदन सिंह ने कहा कि आईडीए अभियान राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत चलाया जाता है। साल में एक बार फाइलेरिया रोधी दवा आवरमेक्टिन डाईइथाइल कार्बामजीन और एलबेंडाजोल खिलाई जाती है। इसे हल्के में लेने के बजाय सतर्क रहने की जरूरत होती है।
लापरवाही के कारण यह दिव्यांग भी बना सकती है इसलिए 10 फरवरी से शुरू होने वाले आईडीए अभियान के तहत फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन करें। इसे तीन साल खा लें तो यह बीमारी कभी नहीं होगी। दो साल से कम के बच्चों, गर्भवती व गंभीर बीमारी से पीड़ितों को छोड़कर सभी को सेवन करना चाहिए। यह दवा पूरी तरह से सुरक्षित है। बस दवा का सेवन खाली पेट नहीं करना है। योगी सरकार ने नए साल पर व्यांगजनों और कुष्ठ रोगियों को बड़ी सौगात देते हुए पेंशन राशि 500 रुपये बढ़ा दी है। पहले 2500 मिलते थे, लेकिन अब 3000 रुपए मिलेंगे। बीते दिनों सीएम ने विधानसभा में अनूपूरक बजट पेश करने के दौरान इसका ऐलान किया था।
कुष्ठ रोगी पेंशन योजना में सिर्फ वह लोग भी फॉर्म भर सकते हैं, जो दृष्टिबाधित हों। मूकबधिर हों या जिनकी मानसिक हालत सही न हो या ऐसे दिव्यांग, जिनका कोई अंग कुष्ठ के कारण ठीक से काम न कर रहा हो। 2020 में पहली बार कुष्ठ रोग ग्रस्त दिव्यांगों को पेंशन स्कीम में शामिल किया गया था। उस समय प्रतिमाह 2500 रुपए देने का फैसला किया गया था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 3000 कर दिया गया है। यह सरकार द्वारा दी जाने वाली किसी भी तरह की पेंशन में सबसे अधिक धनराशि है। पहले यूपी में सिर्फ तीन पेंशन योजनाएं (वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन और विकलांग पेंशन) चलती थीं, लेकिन सरकार ने कुष्ठ रोगियों के कल्याण के लिए कुष्ठावस्था योजना की शुरुआत की है। इसके तहत 12 हजार से अधिक लोग पेंशन के रूप में 3000 रुपए प्रतिमाह प्रति लाभार्थी की दर से प्राप्त कर रहे हैं।
अगर इसका समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो स्थायी दिव्यांगता का कारण बन सकती है। दिव्यांगजन सशक्तीकरण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नरेंद्र कश्यप ने बताया कि प्रदेश के 12361 कुष्ठ रोग जनित दिव्यांगजन को पेंशन का लाभ दिया जा रहा है। यही नहीं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश के तहत संचालित राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत कुष्ठ जनित दिव्यांगता से ग्रसित व्यक्तियों को निःशुल्क रिकांस्ट्रक्टिव शल्य क्रिया काल में लॉस ऑफ वेजेज के रूप में 12000 रुपए भी दिए जा रहे हैं।
कुष्ठ के कारण दिव्यांग हुए लोगों, जिनकी आय गरीबी की रेखा की सीमा के अंदर हो, प्रदेश के मूल निवासी हों, किसी भी आयु वर्ग के हों तथा सरकार द्वारा संचालित अन्य किसी पेंशन का लाभ प्राप्त न कर रहे हों तो 3000 रुपए प्रतिमाह की दर से कुष्ठावस्था पेंशन अनुमन्य है, लेकिन ध्यान रहे यह सुविधा कुष्ठ रोगियों के लिए नहीं है। यह कुष्ठ रोग के कारण दिव्यांग हुए व्यक्तियों को जीविका के साधन के तौर पर आजीवन कुष्ठावस्था पेंशन प्रदान करने की योजना है। साथ ही, उत्तर प्रदेश रोडवेज की बसों में दिव्यांगजन को निःशुल्क यात्रा भी कर सकेंगे। प्रदेश में जून 2024 तक कुल 9162 कुष्ठ रोगी पंजीकृत हैं, जिनका उपचार चल रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विभाग द्वारा कुष्ठ रोगियों का पंजीकरण नहीं किया जाता है और दिव्यांग मरीजों को मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा दिव्यांगता प्रमाण पत्र निर्गत किया जाता है।
यूपी में कुष्ठ अब नहीं होगा अभिशाप
कुष्ठ रोग को देहात में कोढ़ भी कहते हैं तो अंग्रेजी में लेप्रोसी व हैनसेन रोग कहा जाता है, जो संक्रामक बीमारी है। माइको बैक्टीरियम लेप्री नामक बैक्टीरिया से फैलता है। कुष्ठ रोग ऐसे नहीं फैलता है, पर संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद तेजी से फैलता है। कुष्ठ रोगी जब छींकता या खांसता है तो हवा के माध्यम से यह फैलता है। अचानक के बजाय यह धीरे फैलने वाला रोग है। इसके लक्षण नस, म्यूकोसा, हाथ-पैर, आंख व त्वचा में सबसे अधिक प्रकट होते हैं। यह अम्ल रंजित बैक्टीरिया होते हैं, जिसके गुण टीबी के बैक्टीरिया से मिलते-जुलते हैं। पहचान में देरी व समय पर इलाज नहीं होने के कारण हाथ-पैर में विकलांगता आ सकती है इसलिए समाज में लक्षणों के बारे में जागरूकता बहुत जरूरी है।
इसमें शरीर में एक या कई सफेद या पीले धब्बे हो जाते हैं, जो लगभग सुन्न होते हैं। अचानक पलकों के बाल झड़ने लगते हैं। त्वचा मोटी हो जाती है या असामान्य तरीके से फोल्ड होना, माथे, कोहनी, घुटने के पीछे, पैर की नसों का मोटा होना, उनमें दर्द व सूजन होना और त्वचा के नीचे छोटी-छोटी ठोस गांठ होना आदि मुख्य लक्षण हैं। उक्त बात सुनने में जरा अटपटी जरूर लगेगी, पर कुष्ठ रोगियों के भी अंगों को सर्जरी के माध्यम से ठीक करना अब संभव हो गया है। इस काम को कई प्रदेश में जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं रायपुर के प्रख्यात सर्जन डॉ. केएम कांबले। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, प्रयागराज और आगरा के अस्पतालों में यह सुविधा अभी तक उपलब्ध थी।
हाल ही में इसे उत्तराखंड के नैनीताल पहुंचाने में सफलता मिली है तो उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों में स्वास्थ्य विभाग कुष्ठ रोगियों के लिए रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी कैंप लगवा रहा है। इस तरह कुष्ठ रोग की वजह से विकलांग हो चुके लोगों को अब निराश होने की जरूरत नहीं है। उनकी विकलांगता छोटे से ऑपरेशन से दूर की जा सकेगी। परेशानी भरे दिन अब बीतने वाले हैं। सभी जानते हैं कि कुष्ठ रोग के कारण रोगियों के हाथों और पैरों में अनेक प्रकार की विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं। रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी रोगी के प्रभावित अंग को एक ऑपरेशन से ठीक करने में सहायक है व पीड़ित को दैनिक गतिविधियों में आत्मनिर्भर बना देती है।
उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की बात करें तो कुल 102 मरीज हैं, जिनमें 69 संक्रामक (एमबी) व 33 असंक्रामक (पीबी) हैं। कमोबेश ऐसा ही आंकड़ा अपने यहां भी पाया जाता है। विभाग के मुताबिक, प्रति 10 हजार की आबादी में अगर रोग प्रसार दर एक से कम हो जाती है तो उसे उन्मूलन माना जाता है। शासन कुष्ठ रोग की प्रसार दर को कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, जिसके चलते इसमें काफी कमी भी आई है। अभी जिले में कुष्ठ की रोग प्रसार दर 1.11 है। बीते साल विभाग ने अभियान चलाकर नए कुष्ठ रोगियों को खोजने का काम किया था।
जॉर्डन दुनिया का पहला कुष्ठ मुक्त देश
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को जॉर्डन को कुष्ठ रोग मुक्त करने में सफलता मिली है। यूं तो कुष्ठ रोगी दुनिया में कहीं भी मिल जाएंगे, लेकिन 2019 के आंकड़ों की मानें तो भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया में 10-10000 से ज्यादा रोगी पाए गए हैं। डब्ल्यूएचओ ने 13 देशों, जैसे नेपाल, बांग्लादेश, नाइजीरिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, दक्षिण सूडान, श्रीलंका, म्यांमार, इथियोपिया, मेडागास्कर, मोजाम्बिक, फिलीपींस, सोमालिया और तंजानिया संयुक्त गणराज्य में 1000 हजार से लेकर 10,000 मामले पाए हैं। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने बताया कि कुष्ठ रोग ने सैकड़ों साल से मानवता को परेशान कर रखा है। इसे रोकने की पूरी कोशिश की जा रही है, लेकिन जॉर्डन से दो दशकों से अधिक समय से कुष्ठ रोग के किसी भी मामले की सूचना नहीं मिली है। इस तरह वह कुष्ठ रोग से मुक्त होने वाला पहला देश बना है।