फाइल रोकने वाले एलडीए अफसरों का हुआ ट्रांसफर

लखनऊ। सुशांत गोल्फ सिटी टाउनशिप में हुई गड़बड़ियों के मामले में बीते 20 साल के दौरान एलडीए और शासन स्तर पर तैनात रहे अफसरों पर सवाल उठ रहे हैं। टाउनशिप में शर्तों का पालन न होने पर अंसल प्रॉपर्टीज ऐंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की फाइल रोकने वाले तत्कालीन मंडलायुक्त का तबादला हो गया। इसके उलट एग्रीमेंट पर साइन करने वाले एलडीए के कई अफसर रिटायरमेंट के बाद कंपनी में अहम ओहदों पर नौकरी करने लगे। इन अफसरों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अंसल के पक्ष में फैसले करवाने के आरोप तक लगे, लेकिन इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

अंसल को साल 2005 में हाईटेक टाउनशिप का लाइसेंस मिला था। साल 2006 में 1765 एकड़ की टाउनशिप का डीपीआर पास हुआ। इसके बाद डिवेलपर ने साल 2007 में टाउनशिप का दायरा 3530 एकड़ करने का प्रस्ताव दिया। लखनऊ के पूर्व मंडलायुक्त और एलडीए के अध्यक्ष रहे विजय शंकर पांडेय के मुताबिक, एलडीए के तत्कालीन अफसरों ने बोर्ड बैठक के एजेंडे में यह प्रस्ताव शामिल कर लिया। फाइल देखने पर पता चला कि डिवेलपर ने 1765 एकड़ की टाउनशिप के लिए भी तय मानक के मुताबिक जमीन नहीं खरीदी थी। उसने कागजों पर ग्राम समाज और सीलिंग की जमीनें भी दिखाई थीं।

इस पर विजय शंकर पांडेय ने फाइल पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। इसके बाद उनका तबादला हो गया। साल 2009 में दोबारा यही प्रस्ताव एलडीए की बोर्ड बैठक में पास हो गया। एलडीए अफसरों की मेहरबानी यहीं नहीं थमी। साल 2013 में दायरा बढ़ाकर 6465 एकड़ का डीपीआर पास कर दिया गया।

साल 2006 से 2015 के बीच एलडीए की कई बोर्ड बैठकों में अंसल की ओर से एलडीए के पूर्व वीसी आते थे। इनमें एक प्रभावशाली वीसी की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। आरोप है कि अंसल को भू उपयोग बदलवाने के लिए करोड़ों रुपये शुल्क देना पड़ता, लेकिन बोर्ड बैठक में एलडीए ने बिना शुल्क लिए टाउनशिप का भूउपयोग बदल दिया। इससे एलडीए को करोड़ों का नुकसान हुआ।

अंसल की सुशांत गोल्फ सिटी में एलडीए के पूर्व वीसी पीएन मिश्रा की अहम भूमिका मानी जाती है। उन्हें टाउनिशिप के शुरुआती सलाहकारों में माना जाता है। एलडीए के तत्कालीन वीसी बीबी सिंह ने भी रिटायरमेंट के बाद अंसल में बतौर सीईओ जॉइन किया था। इसके अलावा पूर्व वीसी रमेश सिंह ने भी अंसल के लिए काम किया।

हाईटेक टाउनशिप की निगरानी के लिए साल 2006 में ही हाईलेवल कमिटी बनी थी। इसके अध्यक्ष मुख्य सचिव थे। कंपनी के दिवालिया होने के बाद आवंटी भी सवाल कर रहे हैं कि अधूरे और मानक से कमतर काम होने के बावजूद साल 2009 और 2013 में कमिटी ने टाउनशिप का दायरा बढ़ाने की मंजूरी कैसे दी।

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