

संजय राजन
एनोप्लूरा (छोटे सा जुआ) से एनाकोंडा बन गया है वक्फ बोर्ड। वह भी इतना बड़ा कि सब कुछ हड़प करने की जिद कर रहा है। वे परजीवी, जो समाज और देष के लिए बुद्धिजीवी कम व श्रमजीवी ज्यादा थे, आंदोलन जीवी बनने के बाद पर जमीन जीवी बन चुके हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ 3000 संपत्ति ही राजस्व अभिलेखों में इस जमीनभक्षी बोर्ड के नाम दर्ज थीं, जो कि चंद साल में सवा लाख से ऊपर हो गई हैं। ऐसा तो दुनिया के किसी भी सभ्य देष में संभव नहीं है कि सिर्फ उंगली रखने, आंख घुमाने, उंगली उठाकर इशारा करने, रुमाल रखने या मजहबी झंडा लगाने से करोड़ों-अरबों की प्रापर्टी तुम्हारी हो गई। यह कोई जाहिल जंगली दौर नहीं है और न ही बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगागिस्तान, कश्मीर व कोलकाता की तरह जिसकी लाठी, उसकी भैंस का कानून चल रहा है।
प्रकृति और पब्लिक का नियम एक सा है, जब किसी बात की हद हो जाती है तो फिर समय चक्र नाचता है। ऊपर की चीजें नीचे व नीचे वाली मेले के झूले (जायंट व्हील) की तरह ऊपर पहुंच जाती हैं। विज्ञान (न्यूटन लॉ) भी ज्ञान देता है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हिंदी साहित्य में भी यही बातें बड़े-बड़े अक्षरों में लिखी हैं, फिर भी अगर समझ में न आई हों तो जर्मन दार्षनिकों जॉर्ज फ्रेडरिक हैगल और जोहान गॉटलिब फिच की बात समझ लें। वे कहते हैं कि वाद का प्रतिवाद होता है, जिसे संवाद ही सुलझा सकता है। आगे की बात खुद समझ जाएं, वरना विवाद बना रखा है।
सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में कह चुका है कि भूमि प्राकृतिक उपहार है, जिस पर सभी का हक है। गैर-कानूनी तरीके से किसी का कुछ होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। एक मौलाना ने जब दावा किया कि कुंभ मेला मैदान में 55 बीघा भूमि वक्फ बोर्ड की है तो इस पर प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी। पहले ही बे सिर-पैर की बातें करने से देश का माहौल वक्फ के खिलाफ हो चुका है, जिसके बाद से हर बयान आग में घी का काम कर रहा है, फिर वह चाहे संसद में हैदराबाद के सांसद का हो या सड़क किनारे के किसी मौलवी का। बयानों से उपजे हालात के मद्देनजर 27 जनवरी को महाकुंभ में आयोजित धर्म संसद में संतों ने जोरदार तरीके से सनातन बोर्ड बनाने की आवाज उठाई है। हिंदू राष्ट्र की मांग तो अर्से से की ही जा रही है कई मंचों से।
इसी बीच समुदाय विशेष के कुछ बुद्धिजीवी आगे आए व यह कहते हुए बिल का समर्थन किया है कि गरीब मुसलमानों को इसका लाभ मिलना था, पर ऐसा हुआ नहीं है। यह सब अमीरों की चाल थी और पचास से अधिक साल से वे ही संपत्तियों को किराए पर देकर किराया खा रहे थे। कानून में संशोधन का कदम कमजोर मुस्लिम समुदाय के ही कारण उठाया गया है। इरादों में गंदगी और पानी को सिर से ऊपर जाता देख केंद्र सरकार ने आठ अगस्त 2024 को लोकसभा में दो विधेयक पेश किए गए वक्फ (संशोधन) विधेयक व मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024। संशोधन का उद्देश्य बोर्डों के कामकाज में सुधार करना व वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करना है।
इसमें अधिनियम का नाम बदलने, वक्फ की परिभाषा को अद्यतन करने, पंजीकरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और बेहतर रिकार्ड प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी को शामिल करने जैसे बदलावों का प्रस्ताव है। अब बोर्ड के लिए संपत्तियों का वास्तविक मूल्यांकन सुनिश्चित करने को लेकर जिलाधिकारियों के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य हो जाएगा। प्रमुख बदलावों में बोर्ड द्वारा किसी भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पूर्व सत्यापन सुनिश्चित करना होगा। विभिन्न राज्य बोर्ड भी दावे का सत्यापन करेंगे। संरचना में बदलाव के चलते बोर्ड में महिलाओं को शामिल किया जाएगा।
कानून में संशोधन के लिए न्यायमूर्ति सच्चर आयोग और के. रहमान खान वाली समिति की सिफारिशों का भी हवाला दिया। अधिनियम 1995 को वक्फ संपत्तियों को विनियमित करने के लिए लाया गया था, लेकिन इसे कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और अतिक्रमण जैसे मुद्दों पर आलोचना का सामना करना पड़ा। दावा है कि पूरी दुनिया में वक्फ बोर्ड जैसे नाम व काम से मिलती-जुलती कोई संस्था नहीं है और न ही इसका कुरान व शरीयत में कहीं जिक्र है। यह सिर्फ भारत में है, जो कि चंद खुराफाती दिमागों की उपज थी।
दरअसल वक्फ बोर्ड हाल फिलहाल हर उस बड़ी व कीमती जमीन को अपना बताते लगा था, जिसके कागज कमजोर थे, थे ही नहीं या किसी प्रकार का किसी स्तर पर कोई विवाद चल रहा था। जमीनें अब भी वक्फ ले सकता है, पर कागज दिखाने होंगे, वही कागज जिनको लेकर अतीत में पहले षाहीन बाग हुआ था और फिर दिल्ली दंगा, जबकि पहले उल्टा था। दावेदारी के लिए सिर्फ एक बैनर या बोर्ड मौके पर बोर्ड को लगाना होता था। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व भारत के पीआईएल मैन अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि देश में वक्फ बोर्ड के पास 10 लाख एकड़ जमीन है अर्थात् दुनिया के 50 देशों से ज्यादा।
इतनी जमीन सिर्फ सेना और रेलवे के पास है। इस मुद्दे पर सरकार जो भी कदम उठा रही है, बहुत देर से कर रही है। ज्ञात हो कि देश में 30 वक्फ बोर्ड हैं, जिनके मुख्यालय कमोबेष सभी प्रदेशों की राजधानियों में हैं। हाल ही में दिल्ली में वक्फ संपत्तियों के जरिए मनीलॉन्ड्रिंग का भी मामला पकड़ में आया है। मूलरूप से, पूरे भारत में वक्फ बोर्ड के पास करीब 52,000 संपत्तियां थीं। वर्ष 2009 तक चार लाख एकड़ भूमि पर तीन लाख पंजीकृत वक्फ संपत्तियां थीं। सभी वक्फ संपत्तियों से प्रति वर्ष 200 करोड़ रुपये का राजस्व आने का अनुमान है।
सूत्रों ने रेखांकित किया कि इस धन का उपयोग मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए किया जा सकता है, जो कि अभी तक काबिज लोग अपने लिए कर रहे हैं। बोर्ड के महत्वपूर्ण पदों पर धर्म-कर्म से दूर रहे बड़े नेता, दबंग व प्रॉपर्टी डीलर कुंडली मारकर बैठने लगे तो कीमती जमीनों पर कब्जा कर बंदरबांट होने लगा था। वे ऐसी जमीनों को हथिया रहे थे, जिनका विवाद चल रहा हो या फिर जिसका कोई वैध वारिस न हो। इसके अलावा बोर्ड जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता था, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी करार दे देता है। इस कारण अवैध मजारों व नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़ आ रही थी।
एक उदाहरण से समझें, अगर आपकी संपत्ति को वक्फ ने अपनी बता दिया तो रेमेडी के लिए आप किसी कोर्ट में नहीं जा सकते। जाकर वक्फ ट्रिब्यूनल को ही पेपर दिखाइए। यदि फैसला आपके खिलाफ आ गया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्रिब्यूनल में जा सकते हैं। ट्रिब्यूनल में कौन लोग होंगे। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां सरकार किस दल की है। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है। यहीं पर कोर्ट को जागकर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए था और रिव्यू में जाना चाहिए था, पर कोर्ट चाकरी करती नजर आई थी।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि भाजपा सरकार हमेशा यही चाहती थी। वक्फ की कानूनी स्थिति व शक्तियों में किसी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से जदयू व टीडीपी को चेतावनी मिश्रित आदेश देते हुए कहा कि एनडीए के सहयोगी व विपक्षी दल ऐसे किसी कदम को पूरी तरह खारिज करें व संसद में हर ऐसे संशोधनों को पारित न होने दें। बात संभालते हुए कहा कि 2024 चुनाव के नतीजों के बाद सोचा था कि रवैये में बदलाव आएगा, पर ऐसा नहीं हुआ। इसे विफल करने के लिए सभी प्रकार के कानूनी व लोकतांत्रिक उपाय अपनाएंगे।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष व हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि भाजपा शुरू से ही बोर्ड व वक्फ संपत्तियों के खिलाफ रही है इसीलिए स्वायत्तता छीनकर खत्म करने पर तुली हुई है। सड़क किनारे धमकी भरे अंदाज में कहा कि एनडीए कुछ भी कर ले, किसी भी मस्जिद की एक इंच भूमि नहीं लेने दूंगा। इसी तरह की शिगूफाऊ, भड़काऊ व अफवाहू भाषा का इस्तेमाल संभल प्रकरण में करते हुए भीड इकट्ठी की गई थी, जांच में जिसके तार पड़ोसी जिलों से लेकर पाकिस्तान तक गए थे इसलिए भविष्य में सरकार को हालात के दोहराव से बचने के लिए सतर्क भी रहना होगा, क्योंकि विपक्षी जमघट कोई भी घटना कारित करने के लिए अंदर से भरे बैठे हैं संभल से लेकर संगम तक।
अल्पसंख्यक मामलों के पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने ट्वीट किया कि वक्फ की कार्यशैली को ‘टच मी नॉट’ (अछूत) की सनक व सियासत से बाहर आना होगा। उन्होंने कहा कि समावेशी सुधारों पर सांप्रदायिक वार ठीक नहीं। कोई कितने भी तर्क व कुतर्क कर ले, पर सच यही है कि यह बोर्ड जमीन कब्जाने वाला एक संगठन बन गया है। वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने बोर्ड के काले कारनामों की न सिर्फ हमेशा अनदेखी की, बल्कि बहुसंख्यकों को ताक पर रखकर बढ़ावा भी दिया। तुष्टिकरण के चलते बोर्ड के फलने-फूलने के लिए नए-नए रास्ते के तहत असीम शक्तियां दीं, जिससे बोर्ड की संपत्ति दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ने लगी।
भू-माफिया बना वक्फ बोर्ड : सीएम
हाईकोर्ट के एक मामले में मांगी गई रिपोर्ट व सीएम योगी के सख्त निर्देश के बाद राजस्व और वक्फ की संयुक्त जांच में करीब सवा लाख सरकारी और निजी भू संपत्तियों को वक्फ में दर्ज करने का मायाजाल सामने आया है। राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड में 124735 और शिया बोर्ड में 3102 संपत्ति दर्ज हैं। कुल 127837 वक्फ भू संपत्तियों में से कागज सिर्फ 3000 संपत्तियों के ही हैं। बाकी राजस्व रिकार्ड में मूल यानी कि पैतृक नाम से हैं। शासन ने सभी जिलाधिकारी से फसली वर्ष 1359 (सन 1952) के रिकार्ड में स्थिति व सत्यापन रिपोर्ट मांगी है। हाईकोर्ट ने दिसंबर 2023 में एक केस की सुनवाई के क्रम में राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि कितनी सरकारी संपत्तियां गलत ढंग से वक्फ के नाम पर दर्ज हैं, जांच करके रिपोर्ट दें। इस पर वक्फ व राजस्व विभाग के अधिकारियों ने थोड़े बहुत टाल-मटोल के बाद गांव, तहसीलों और जिला स्तर से रिकार्ड खंगाले।
अधिकारी बताते हैं कि बोर्डों ने धारा 37 के तहत हजारों सरकारी व निजी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति तो घोषित कर दिया, लेकिन विरोध के डर से नामांतरण के लिए नोटिफिकेशन तहसीलों को नहीं भेजे थे। अधिकार का बेजा इस्तेमाल देखकर मुख्यमंत्री ने हाल ही में यहां तक कहा था कि वक्फ बोर्ड भू-माफिया की तरह काम कर रहा है। अवैध रूप से कब्जाई गई एक एक इंच जमीन वापस ली जाएगी। शासन ने हाईकोर्ट में पूरी रिपोर्ट रखने के लिए छह माह का और समय मांगा है। देश और प्रदेश में वक्फ बोर्ड के नाम पर चलाए गए भूमि जिहाद अभियान की जांच के क्रम में ढेर सारे चौंकाने वाले आंकड़े आ रहे हैं। इनमें मामूली फर्क से तो इंकार नहीं किया जा सकता है, पर लब्बोलुआब एक सा है। प्रदेश में कुल 57792 सरकारी संपत्तियों पर वक्फ का अवैध कब्जा पाया गया है, जिसका कुल रकबा 11712 एकड बनता है।
सर्वाधिक कब्जे अयोध्या, शाहजहांपुर, रामपुर, जौनपुर और बरेली में पाए गए हैं तो महोबा में एक भी नहीं पाई गई है। सोनभद्र में एक वक्फ संपत्ति है। हालांकि गजट में महोबा में 245 और सोनभद्र में 171 संपत्तियों पर अवैध कब्जे पाए गए हैं। ऐसी संपत्तियों का जिलेवार ब्यौरा लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दिया गया है। वक्फ बोर्ड के रिकार्ड में जौनपुर में 4167 वक्फ संपत्तियों में से करीब आधी 2096 सरकारी हैं, अयोध्या में 3652 में 2116, बरेली में 3499 में करीब 2000, रामपुर में 3365 में 2363 व शाहजहांपुर में 2589 संपत्तियों में से 2371 सरकारी हैं। बाकी जिलों का भी हाल देख लेते हैं।
लखीमपुर खीरी 1792, बुलंदशहर 1778, फतेहपुर 1610, सीतापुर 1581, आजमगढ़ 1575, सहारनपुर 1497, मुरादाबाद 1471, प्रतापगढ़ 1331, आगरा 1293, अलीगढ़ 1216, गाजीपुर 1251, मेरठ 1154, संभल 1150, बिजनौर 1051, अमरोहा 1045 और देवरिया में 1027 सरकारी संपत्तियों पर कब्जा पाया गया है। प्रदेश में 40 जिले ऐसे भी हैं, जहां बोर्ड के रिकार्ड में सैकड़ों वक्फ संपत्तियां दर्ज हैं, लेकिन तहसील रिकार्ड में एक का भी नामांतरण नहीं है। ये जिले हैं एटा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, मथुरा, अलीगढ़, कासगंज, अयोध्या, आजमगढ़, बलिया, बदायूं, शाहजहांपुर, सिद्धार्थ नगर, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, जालौन, ललितपुर, आगरा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर देहात, हरदोई, रायबरेली, बुलंदशहर, गाजियाबाद, हापुड़, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, बिजनौर, कौशांबी, प्रयागराज, चंदौली, जौनपुर, वाराणसी और महोबा।
क्यों बनाया गया था वक्फ बोर्ड
दरअसल सोची समझी साजिश के तहत बंटवारे में जो मुसलमान लमान पाकिस्तान चले गए थे, उनकी जमीनों (शत्रु संपत्ति) को वक्फ संपत्ति घोषित करने में मशगूल था। यह सही है कि 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते में तय हुआ था कि दोनों देशों के विस्थापितों का अपनी-अपनी संपत्तियों पर हक रहेगा, जिसके तहत वे संपत्तियां बेच सकेंगे, पर पाकिस्तान को वादा तोड़ने के लिए ही जाना जाता है। हिंदुओं की छोड़ी जमीनें, मकानों और अन्य संपत्तियों पर वहां की सरकार या मुस्लिमों ने कब्जा कर लिया था, जबकि इधर उनके वकील नेहरू दलील दे रहे थे कि पाकिस्तान गए मुसलमानों की संपत्ति को कोई हाथ नहीं लगाएगा। इसके बाद 1954 में गरीब मुसलमानों के हक में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था।
1995 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने 1954 के एक्ट में संशोधन कर नए-नए प्रावधान जोडकर बोर्ड को असीमित शक्तियां दी थीं। वर्ष 2013 में मनमोहन सरकार ने और शक्तियां देकर एक ड्रैगन बना दिया था। पं. नेहरू ने वक्फ के रूप में एक वायरस छोड़ा, जिसे उदंड बच्चा बनने में इंदिरा गांधी ने मदद की। राजीव गांधी के दौर में किशोर हुआ, पीवी नरसिंहा राव ने उसे ताकत देकर युवा बना दिया और मनमोहन सिंह ने इतना मेच्यौर कर दिया कि अब देश की हर कीमती व ऐतिहासिक चीज वक्फ की है तो फिर वक्फ को हर तरह के जवाब के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली में पूरे गांव को ही वक्फ की संपत्ति बता दिया गया था तो महाराष्ट्र के सोलापुर में भी ऐसा ही कुछ हुआ। मंशा बुरी नहीं थी। गरीब मुस्लिम गुरबत में पैदा होते हैं और गुरबत में ही मर जाते हैं, वे भी ठीक तरह से जी सकें इसलिए बनाया गया था। यही तो जिहाद है, पहले हाथ जोड़कर शरण मांगो, फिर जीने के लिए हवा, पानी और राशन, फिर छत के लिए देने लगो भाषण और फिर आधार कार्ड, वोटर कार्ड, राशन कार्ड, मताधिकार। उसके बाद जहां रहो, वहीं पर सड़क और रेलवे लाइन के किनारे कब्जा, गंदगी व मजार बना दो।
इसकी भी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जब लोगों ने कहना शुरू किया कि खोदकर देख लेते हैं, शव मिले तो तेरा, शिव मिले तो मेरा। दृष्टांत मीडिया हाउस के राजनीतिक संपादक संजय राजन अपने कार्यक्रम “मुद्दे की बात राजन के साथ” में कहते हैं कि हिंदू धर्मस्थलों और हिंदुओं के उत्थान के लिए सनातन बोर्ड गठित करने की बात को त्रिवेणी की धारा के किनारे आयोजित धर्म संसद में धार दी गई है, जिसका देष भर में पहुंचना तय है क्योंकि किस्तों में ही सही, पूरा देश महाकुंभ पहुंच रहा है। समस्त धर्माचार्य महाकुंभ में कल्पवास कर रहे हैं। सनातन को सार्वभौम बनाए रखने के लिए ऐसे आयोजनों में धर्माचार्य आपस में विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं।
ठीक वैसे ही प्रस्ताव भी पारित किए जाते हैं, जैसे संसद में विधेयक के रूप में कई बार सभी ने देखा होगा। धर्मगुरुओं ने हुंकार भरते हुए कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को उसी समय 1954 में ही सनातन धर्मावलंबियों के लिए भी बोर्ड गठित करना चाहिए था। कम से कम अब तो सनातन बोर्ड का गठन हो ही जाना चाहिए, यह कहते हुए चर्चा शुरू की प्रसिद्ध कथावाचक देवकी नंदन शास्त्री ने।
प्रस्ताव पर धर्म संसद में चर्चा के बाद सर्वसम्मति भी बन गई। प्रक्रिया के तहत अब इसे केंद्र सरकार को भेजने की तैयारी है। आगे क्या होगा, यह तो समय के गर्भ में है फिलवक्त। इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और कि उसी दिन दिल्ली में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक के लिए गठित ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी यानी जेपीसी ने 14 संशोधनों के साथ नए वक्फ कानून को मंजूरी दे दी। विपक्षी दलों के करीब 500 संशोधन प्रस्ताव आए थे, जिनमें अधिकांश को खारिज कर दिया गया। उसके बाद से सियासत चरम पर है। अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
428 सिफारिशों में से 281 पर असहमति
वक्फ विधेयक को समीक्षा के लिए भीमकाय संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया था। डुमरियागंज से बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल जेपीसी के अध्यक्ष बनाए गए थे। इसकी कई हंगामेदार बैठकें होने के बाद अब मामला अंतिम दौर में पहुंच गया है। विभिन्न समुदायों में भी भारी विरोध हो रहा है क्योंकि फ्री राषन व मकान आदि के साथ जमीन खाने को अब नहीं मिलेगी। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा, जिसे लागू करने का दायित्व कार्यपालिका को करना होगा। सीधी सी बात है कि देश में दो नंबरी इतने घुस गए हैं कि असली-नकली में पहचान जरूरी है, सो कागज दिखाओ। बिना कागज कोई बात नहीं होगी।
जेपीसी अध्यक्ष ने विपक्ष पर खास एजेंडे को बढ़ाने की कोशिश का आरोप लगाया और बताया कि 428 पेज में से 281 पर असहमति नोट दाखिल किया है। अंतिम रिपोर्ट सभी संबंधित हितधारकों की गवाही पर विचार करने के बाद तैयार की गई है। तुष्टिकरण रणनीति के चलते विपक्ष पूरे देश में फैला रहा है कि यह बिल सभी संपत्तियां हड़प लेगा, जबकि यह सही नहीं है। वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग, सरकारी अधिकारियों, हितधारकों और इस्लामी विद्वानों के प्रतिनिधियों आदि से परामर्श के बाद ही इसे अंतिम रूप दिया गया है। पाल ने कहा कि रिपोर्ट में ओवैसी और नसीर हुसैन सहित सभी सदस्यों की खंड-दर-खंड सिफारिशें व संशोधन शामिल हैं। संशोधनों पर निर्णय मतदान के माध्यम से किए गए।
अब विधेयक का जो विरोध कर रहे हैं, वे जेपीसी कार्यवाही और मतदान प्रक्रिया में शामिल थे। पाल ने कहा कि 30 जनवरी को स्पीकर ओम बिरला को इसे सौंप दिया था। उनके एजेंडा तय करते ही कार्य मंत्रणा समिति मंजूरी देगी, तब इसे सदन के पटल पर रखा जाएगा। वक्फ की जमीन पर 15 लाख किराएदार ! संयुक्त संसदीय समिति ने पेज 407 व 408 में कहा है कि दिल्ली वक्फ किरायेदार कल्याण संघ ने समिति के सामने गंभीर परेशानियां रखते हुए बताया कि 75 साल से बोर्ड की दुकानों में रोजी-रोटी चला रहे हैं, लेकिन अब वक्फ अतिक्रमणकारी जैसा बर्ताव कर रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इसी तरह देशभर में वक्फ संपत्तियों पर 10 से 15 लाख किराएदार हैं। अकेले दिल्ली में 2600 किराएदारों के बारे में पता चला है।
अधिकांश तीन पीढ़ियों से दुकानें चला रहे हैं। मरम्मत के बिना खंडहर हो गई हैं दुकानें, जबकि वक्फ बोर्ड ने समय-समय पर बड़ी राशि दान के रूप में ली है। किराया भी बढाया है, लेकिन अब उनको नीलामी का सामना करना पड़ रहा है। पीड़ितों ने बताया कि किरायेदार की मौत होने पर वारिस को दुकान देने के पहले बोर्ड फीस वसूलता है। समिति ने इन चिंताओं को गंभीरता से लिया और सरकार से सख्त कदम उठाने की अपील की है।
समिति का कहना है कि दोनों पक्षों के बीच विश्वास और सहयोग होना चाहिए। इस तरह अब सरकार पर किराएदारों के अधिकारों को बचाने का दबाव बढ़ गया है। यह भी सिफारिश की है कि किराया बढ़ाने व बेदखली के डर व परेशानी को खत्म करने के लिए किराएदारों कोलंबी अवधि के पट्टे दिए जाएं। समिति ने मंत्रालय से अपील की है कि वे पूरे देश में वक्फ किराएदारों की समस्याओं पर विचार करें और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए कानूनी कदम उठाएं।