साहित्य में अमर हो गयीं सुभद्राकुमारी चौहान

भारत के बच्चे-बच्चे द्वारा “ख़ूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी” झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को याद करते हुए अनेकों बार ये पंक्तियां पढ़ी गयीं हैं। सुभद्राकुमारी चौहान के द्वारा लिखी इस कविता में देश की उस वीरांगना के लिए ओज था, करुण था, स्मृति थी और श्रद्धा भी। इसी एक कविता से उन्हें हिंदी कविता में प्रसिद्धि मिली और वह साहित्य में अमर हो गयीं। सुभद्राकुमारी का लिखा यह काव्य सिर्फ कागज़ी नहीं था, जिस जज़्बे को उन्होंने कागज़ पर उतारा उसे जिया भी। इसका प्रमाण है कि सुभद्रा कुमारी चौहान महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थीं और कई दफ़ा जेल भी गयीं। 

यूपी के निहालपुर गांव के एक राजपूत परिवार में सुभद्रा कुमारी का जन्म 1904 में हुआ था। उन्होंने कम उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। सुभद्राकुमारी चौहान कम उम्र से ही एक उत्साही लेखिका थीं और स्कूल जाते समय घोड़े की गाड़ी की सवारी करते हुए भी लिखने के लिए जानी जाती थीं। उनकी पहली कविता 9 साल की उम्र में प्रकाशित हुई थी। प्रयागराज के क्रॉस्थवेट गर्ल्स स्कूल से उन्होंने 1919 में मिडिल-स्कूल की परीक्षा पास की थी। 

सुभद्राकुमारी खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ विवाह के बाद ब्रिटिश राज के खिलाफ महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गईं। 1923 और 1942 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए उन्हें दो बार जेल भेजा गया था।

साल 1923 में चौहान की अडिग सक्रियता ने उन्हें पहली महिला सत्याग्रही बनने के लिए प्रेरित किया, जो अहिंसक विरोधी उपनिवेशवादियों के भारतीय समूह की सदस्य थीं, जिन्हें राष्ट्रीय मुक्ति के संघर्ष में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने 1940 के दशक में जेल के अंदर और बाहर दोनों जगह स्वतंत्रता की लड़ाई में क्रांतिकारी बयान देना जारी रखा, कुल 88 कविताओं और 46 लघु कथाओं को प्रकाशित किया।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की एक प्रतिभागी के रूप में अपने प्रभावशाली लेखन और कविताओं का इस्तेमाल दूसरों को राष्ट्र की संप्रभुता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए किया। उनके पद्य और गद्य मुख्य रूप से भारतीय महिलाओं की कठिनाइयों और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके द्वारा पार की गई चुनौतियों पर केंद्रित थे।

सुभद्राकुमारी चौहान के लेखन को अभी भी कई भारतीय कक्षाओं में एक प्रधान और ऐतिहासिक प्रगति का प्रतीक माना जाता है। उनका निधन 15 फरवरी 1948 को हो गया था। उनके अनुकरणीय कार्य के सम्मान में, उनके नाम पर एक भारतीय तटरक्षक जहाज का नाम रखा गया। मध्य प्रदेश सरकार ने जबलपुर के नगर निगम कार्यालय के सामने सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रतिमा भी लगाई है।

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