एससी ने टीएनपीसीबी की देरी पर उठाए सवाल

नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (TNPCB) को आड़े हाथों लिया, जिसने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो साल की देरी से याचिका दायर की। यह याचिका मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ थी, जिसमें TNPCB की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया गया था। जस्टिस जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने कहा कि TNPCB को याचिका दायर करने में 637 दिनों (लगभग दो साल) की देर हुई। कोर्ट ने पूछा कि अधिकारियों को वक्त पर कोर्ट में आने के लिए किसने रोका था?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘वास्तव में यह दोस्ताना मैच है, जहां नौकरशाह चाहते हैं कि याचिका खारिज होने में सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की मुहर लगे। जब राज्य इतनी देरी से आता है तो हमें संदेह होता है।’ कोर्ट में पेश मामले के मुताबिक, 2006 से 2014 के बीच ईशा फाउंडेशन ने कोयंबटूर जिले के वेल्लियांगिरी में एक योग और ध्यान केंद्र का निर्माण किया। TNPCB ने दावा किया कि यह निर्माण पर्यावरणीय मंजूरी के बिना किया गया था। मद्रास हाई कोर्ट ने 2022 में इस कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया और कहा कि ईशा फाउंडेशन का केंद्र शैक्षणिक संस्थान की श्रेणी में आता है और इसे छूट मिल सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने याची से कहा कि आप यह नहीं कह सकते कि एक योग केंद्र कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं है। अगर वे योजना के अनुसार नहीं चल रहे हैं, तो आप गैर-अनुपालन को चुनौती दे सकते हैं, लेकिन आप लाखों वर्ग गज में बने इस ढांचे को गिराने की अनुमति नहीं पा सकते। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अब जब योग केंद्र बन चुका है, तो पर्यावरण मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाए। पर्यावरणीय मानकों में धूप, हरियाली और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जैसी चीजें शामिल होनी चाहिए।

ईशा फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत से अनुरोध किया कि यह मामला महाशिवरात्रि के बाद सुना जाए, क्योंकि वहां एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाना है। रोहतगी ने कहा कि हमारे पास सभी आवश्यक मंजूरी हैं। पर्यावरण मंजूरी ही एकमात्र मुद्दा है, लेकिन हमारा योग केंद्र 80% हरियाली है और भारत के सबसे अच्छे केंद्रों में से एक है। सुप्रीम कोर्ट ने TNPCB की देरी पर संदेह जताया और राज्य सरकार को पर्यावरण मानकों का पालन सुनिश्चित करने को कहा। मामले की अगली सुनवाई महाशिवरात्रि के बाद होगी।

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