
देश की महिलाओं का राजनीति से लेकर अन्य तमाम क्षेत्रों में अहम योगदान रहा है। औरतों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में खुद को साबित किया है। ऐसी ही एक महिला सरोजिनी नायडू थीं। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 13 फरवरी को सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। उन्होंने न सिर्फ राजनीति बल्कि देश की आजादी में भी अहम भूमिका निभाई थी। साथ ही वह देश की पहली महिला राज्यपाल भी थीं।
हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक बंगाली ब्राह्मण थे। जोकि हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज के प्रिंसिपल थे। वहीं सरोजिनी की मां एक कवियत्री थीं। सरोजिनी नायडू बचपन से ही पढ़ने-लिखने में काफी होशियार थीं। जब वह महज 12 साल की थीं, तो उन्होंने फारसी में Mahr Muneer नामक नाटक लिखा था। फिर वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश चली गईं।
पढ़ाई के बाद जब सरोजिनी नायडू भारत लौटी, तो उस दौरान देश में प्लेग बीमारी फैली हुई थी। इस बीमारी से प्रभावित लोगों की सरोजिनी ने बड़ी लगन के साथ सेवा की। उनके कार्य को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उनको केसर-ए-हिंद के पदक से सम्मानित किया था।
लंदन में ही सरोजिनी नायडू की मुलाकात डॉ पीजी नायडू से हुई। फिर उस दौर में दोनों ने अंतरजातीय विवाह करने का फैसला लिया। समाज की कई रूढ़ियों को तोड़ते हुए सरोजिनी आगे बढ़ीं और डॉ नायडू से शादी कर वह सरोजिनी चट्टोपाध्याय से नायडू बन गईं।
यह बात साल 1914 की है, तो इंग्लैंड में पहली बार सरोजिनी नायडू की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। इस दौरान वह गांधीजी के विचारों से काफी प्रभावित हुई थीं और वह बापू के साथ स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़ीं। वह देश को आजाद कराने की मुहिम में लग गईं। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर कई सत्याग्रहों में हिस्सा लिया और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल भी गईं।
भारतीय समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए सरोजिनी नायडू ने अलग-अलग राज्यों का दौरा शुरू कर महिलाओं को जागरूक करने का काम किया। वह लंबे समय तक कांग्रेस की प्रवक्ता रहीं और साल 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में सरोजिनी नायडू को प्रथम महिला अध्यक्ष बनाया गया।
बता दें कि सरोजिनी नायडू को गांधीजी प्यार से बुलबुल कहते थे। 08 अगस्त 1932 को महात्मा गांधी द्वारा लिखे एक पत्र में सरोजिनी नायडू को इसी नाम से संबोधित किया था। वहीं इस पत्र में गांधीजी ने खुद को लिटिल मैन लिखा था। ओजस्वी वाणी, कल्पनायुक्त भावपूर्ण कविताओं की वजह से सरोजिनी नायडू को महात्मा गांधी ने उनको भारत कोकिला की उपाधि दी थी।
देश की आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सरोजिनी नायडू को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनने का आग्रह किया। वह पंडित नेहरू का कहना टाल नहीं पाईं, लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा कि वह खुद को एक कैद पक्षी की तरह महसूस कर रही हैं।
ऑफिस में काम करने के दौरान कार्डियक अरेस्ट की वजह से 02 मार्च 1949 को सरोजिनी नायडू ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।