
आदर्श चौहान
उन्हें श्रद्धांजलि देने तक पर रोक लगा दी गई है और पाकिस्तान के पिता मो. अली जिन्ना को बाप बनाने की नीति पर चल पड़ा है। प्राथमिक व माध्यमिक की नई पुस्तकों से शेख को हटा दिया गया है। साथ ही उनसे राष्ट्र स्थापना का श्रेय व राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीन लिया गया है। संधियों एवं बलूचों की आज की हालत देखकर भी पूर्वजों पर किए गए जुल्म उन्हें नहीं याद आ रहे हैं और वे रोज पाकिस्तान के करीब जा रहे हैं।
एक बांग्लादेश के दृष्टांत से पूरी दुनिया को समझ ही नहीं लेना चाहिए, बल्कि सतर्क भी हो जाना चाहिए भरोसे के मामले में। काफी कीमत अदा करने के बाद कम से कम अमेरिका व यूरोप महाद्वीप के ईसाई और यहूदी देश तो पूरी तरह से वाकिफ हो ही चुके हैं इतने कालखंड में। अनाधिकृत रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है, पर अधिकृत रूप से 1971 से 2024 तक बीते 53 साल में बच्चे की तरह ख्याल रखते हुए लाखों डॉलर का दान-दक्षिणा व करोड़ों डॉलर का कर्ज, बहुत कम ब्याज दर पर कर्ज लुटाने के बाद भारत को बांग्लादेश बदले में दे सका है बेहूदगी, बदजुबानी, जाहिलियत और विश्वासघात।
इस दौरान दोस्ती के नाम पर न जाने कितने प्रोजेक्ट शुरू किए गए? इस वजह से ही शेष विश्व को सदा के लिए सतर्क हो जाना चाहिए कि हमें यह मिला है तो उन्हें क्या मिलेगा? एक छोटी बात से ही बात आईने की तरह साफ हो जाएगी कि जिन शेख मुजीबुर्रहमान ने अत्याचार में जुटे पाकिस्तान से आजाद करवाकर बांग्लादेश बनाया। उसके लिए कुर्बानी दी, उनके बच्चों व परिजन को क्या मिला, दर-दर की ठोकरें? वे हजारों लोग, जिन्हें तत्कालीन पाक आर्मी ने भून दिया था या राइफलों की बट से चेहरा विकृत कर दिया था या बूटों तले रौंद दिया था, उनके वंशज वह मार भूलकर पाकिस्तान का न सिर्फ गाना गा रहे हैं, बल्कि बांग्लादेश के पिता बंग बंधु के स्टेच्यू को बूटों तले रौंद रहे थे।
उन्हें श्रद्धांजलि देने तक पर रोक लगा दी गई है और पाकिस्तान के पिता मो. अली जिन्ना को बाप बनाने की नीति पर चल पड़ा है। प्राथमिक व माध्यमिक की नई पुस्तकों से शेख को हटा दिया गया है। साथ ही उनसे राष्ट्र स्थापना का श्रेय व राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीन लिया गया है। संधियों एवं बलूचों की आज की हालत देखकर भी पूर्वजों पर किए गए जुल्म उन्हें नहीं याद आ रहे हैं और वे रोज पाकिस्तान के करीब जा रहे हैं। दोनों ही देशों के शासनाध्यक्षों ने बहुत ही जल्द हाथ मिला लिए थे और मेल-मुलाकात की। यूनुस ने शहबाज शरीफ को चीनी व हथियारों का ऑर्डर दिया है। साथ ही पाकिस्तानियों को वीजा में विशेष छूट देने की बात पर भी हामी भरी है।
यहां पर बड़ा सवाल यह है कि बांग्लादेश प्रमुख मो. यूनुस जनता की तरह सोच रहे हैं या जनता उनकी तरह सोच रही है। नतीजा कुछ भी हो, कदू पर छूरी गिरे या छूरी पर कदू। कटना कदू को ही होगा। यानी जख्म कद्दू के ही लगेगा। आज की तारीख में वही कद्दू बन चुका है बांग्लादेश। कुछ जाहिल देशों व भारत के प्रदेशों में इधर जो एक ट्रेंड देखने को मिल रहा है, वह यह है कि राजनीतिक दलों, सत्ता व विदेश नीति का एजेंडा वहां की जनता तय कर रही है। चाहे फिर बात कनाडा की हो या कर्नाटका की, बंगाल की हो या बांग्लादेश की, यमन की हो या केरल की, इजरायल की हो या ईरान की, फिलिस्तीन की हो या पाकिस्तान की, अमेरिका की हो या अफगान की, सीरिया की हो या लेबनान की या रूस की हो या यूक्रेन की या फिर चीन की हो या ब्रिटेन की।
सभ्यता की 21वीं सदी में भी अपने-अपने हित के हिसाब से नेरेटिव व टूलकिट चलाए जा रहे हैं, लिहाजा शासनाध्यक्ष भी उसे सिर-माथे पर रखकर चल रहे हैं, क्योंकि वे सत्ता पाने के लिए वोट वहीं से पाते हैं। उनके खिलाफ जाने पर लाखों लोग सड़क पर उतर आते हैं और सत्ताच्युत कर देते हैं। पाकिस्तान व म्यांमार सहित दुनिया के कई देशों में ऐसे प्रयास हो चुके हैं तो बांग्लादेश व सीरिया के सफल प्रयास सभी के सामने हैं। हमारी नजर में तो अपनी ही जाहिल नजर लग गई है बांग्लादेश को, न कि किसी और की।
हालात और हालत देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वह खुद ही अपना दुश्मन बन बैठा है तथा खुद से लड़ रहा है। अपनी ही संपत्ति को न सिर्फ तोड़-फोड़ रहा है, बल्कि ऐसे लूट व जला भी रहा है, जैसे- कबायली। ज्ञात हो कि पाकिस्तान ने यहां से गए भारतीय मुसलमानों को 1947 से मुहाजिर कहना शुरू किया था तो शेखहसीना को अपदस्थ करने के बाद बांग्लादेश ने यही काम अब शुरू किया है। जमात-उल-मुजाहिद्दीन पाबंदी हटने के बाद से एक बार फिर चर्चा में है तो दर्जनों आतंकियों व पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया की रिहाई के बाद हालात बदल गए हैं।
दिसंबर 24 में जमात के एक कार्यक्रम में खूब जूतम पैजार हुई है, भारतीय व बांग्लेदेशी मुसलमान के नाम पर। हिंदू धर्मगुरु चिन्मय कृष्णदास प्रभु की गिरफ्तारी के बाद से एक बार फिरअल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ गए हैं। बांग्लादेश के झंडे के अपमान के कारण देशद्रोह के आरोप में ढाका एयर पोर्ट से गिरफ्तार कर उन्हें चटगांव की कोर्ट में पेश किया गया था, जहां उनकी मदद के लिए मुश्किल से एक वकील ढूढ़े मिले थे, जिन्हें उन्मादी भीड़ ने मार दिया था। अब कोई उनकी मदद करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है, जबकि 26/11 के मुंबई हमले के दोषी करीब पौने दो सौ भारतीय व विदेशियों के हत्यारे आतंकी कसाब को भारत में आसानी से वकील मिल जाता है और कोई उन पर जूता क्या, स्याही तक नहीं फेंकता है?
उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश को अडानी के झारखंड प्रोजेक्ट और त्रिपुरा से बिजली की आपूर्ति की जाती रही है, जिसका बकाया करीब 700 करोड़ (अडानी) व त्रिपुरा का 200 करोड़ है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने बताया कि राज्य में पावर प्लांट की स्थापना के समय कुछ-कुछ हैवी मशीनरी चटगांव (बांग्लादेश) के रास्ते मौके पर लाई गई थी, लिहाजा कृतज्ञता के कारण समझौता करके 2016 से ही बिजली सप्लाई की जा रही है। अगस्त के बाद से उन करीब सौ वस्तुओं का व्यापार भी ठप है, जो भारत से निर्यात होती रही हैं। पुराने एहसानों को उसके साथ हम भी भूल जाते हैं, पर नए की बात करें तो पूरा बहीखाता अरबों में जाएगा।
भारत की इतनी उधारी के बाद भी वहां के नौसिखिया मंत्रियों के जो घटिया बयान आ रहे हैं, उन्हें विनाश काले विपरीत बुद्धि ही कहा जाएगा। यह बात अर्से से विभिन्न मंचों पर कही जा रही है कि जिस दिन करीने से कागज चेक होने लगेंगे, उस दिन लाखोंघुसपैठियों को उल्टे पांव भागना पड़ेगा। अब बहरे भी सुनने लगे हैं और नासमझ भी समझने लगे हैं कि आखिर विपक्षी दल हमेशा कागज चेक करने का विरोध क्यों करते रहे हैं? नवी मुंबई में 13 बांग्लादेशी गिरफ्तार किए गए हैं। इनमें आठ महिलाएं और दो पुरुष हैं। बदले माहौल में पहली बार बिचौलियों पर भी नकेल कसी जा रही है। दिल्ली पुलिस ने हाल हीमें एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ किया है, जो कि लगातार आ रहे बांग्लादेशियों को दिल्ली में बसाने का ठेका लेता है।
इस पर एक बड़े भाजपा नेता ने कहा कि अवैध अप्रवासी भारतीय इकोनॉमी, राजनीति, समाज और सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती हैं। इनकी सफाई का काम बहुत पहले से ही शुरू हो जाना चाहिए था। पता नहीं हम क्यों पानी के नाक तक आ जाने के बाद ही जागते हैं हर समस्या के सिलसिले में? ये बॉर्डर इलाकों में तो बड़ी संख्या में बस ही चुके हैं। देश के लगभग हर राज्य तक पहुंच चुके हैं। ऐसे लोगों का चिकेन नेक के आसपास सिलीगुड़ी कॉरिडोर में बसना देश की सुरक्षा के लिए गंभीर बात है, क्योंकि चीन व पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश की नजदीकियां लगातार बढ रही हैं।
उप राज्यपाल वीके सक्सेना के आदेश के बाद पुलिस राजधानी में बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं की पहचान के लिए विशेष ऑपरेशन चला रही है। दिल्ली में सिर्फ दो हफ्ते में सिर्फ एक मलिन बस्ती में आधार कार्ड आदि चेक किए गए तो करीब 200 बांग्लादेशी व रोहिंग्या मिले हैं, जिन्हें तुरंत अपने देशभेज दिया गया है। उन्हें मदद देने वाले गिरोह का भी पुलिस ने भंडाफोड़ किया है, जो कि लगातार आ रहे बांग्लादेशियों को दिल्ली में बसाने का ठेका लेता है। दक्षिणी जिला के पुलिस उपायुक्त ने बताया कि गिरोह में जो गिरफ्तार किए गए हैं, उनमें पांच बांग्लादेशी हैं तो सात स्थानीय। इससे साफ है कि लोग मिशन के तहत इसी काम में लगे हुए हैं।
जांच के लिए एक टीम बांग्लादेश गई है। आरोपियों से बांग्लादेशी पहचान पत्र व जन्म प्रमाण पत्र भी बरामद किए गए हैं। 21 अक्टूबर को संगम विहार मेंसेंटू शेख की हत्या हुई थी, जहां से तार जोड़ते जोड़ते पुलिस इस गिरोह तक पहुंची। पुलिस ने बांग्लादेशी मीदुल उर्फ आकाश अहमद, उसकी पत्नी सिंथिया शेख, फरदीन अहमद उर्फ अभी, उसकी पत्नी रीपा और बरेली से मुन्नी शेख को गिरफ्तार किया है। अन्य स्थानीय हैं अफरोज, साहिल सहगल, दीपक मिश्रा, सोनू कुमार, सद्दाम हुसैन, मो. चांद और रणजीत। सेंटू भी गिरोह का सदस्य था और घुसपैठियों के कूचरचित पेपर तैयार करता था, पर रुपए आदि की छोटी-छोटी बातों पर धमकाता रहता था कि खुलासा कर दूंगा इसलिए मुंह बंद करना जरूरी हो गया था।
इससे साफ है कि वे लूट और हत्या आदि में भी ज्यादा सोचते नहीं हैं। वे कई साल से संगम विहार में रह रहे थे। फुलप्रूफ तैयारी की बानगी देखिए। पुलिस ने सेंटू के घर से 25 आधार कार्ड, आठ पैन कार्ड, चार वोटर कार्ड, बड़ी संख्या में राशन कार्ड, लैपटाप सहित अन्य मशीन बरामद की हैं। इसके बाद आगे की परतें खुलती चली गई। पुलिस ने रोहिणी सेक्टर-5 में कंप्यूटर सेंटर चलाने वाले साहिल सहगल को दबोचा तो पता चला कि सेंटू घुसपैठियों के फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनवाने आता था और फिर वह आधार बनाने के लिए रंजीत को रोहिणी सेक्टर-7 भेज देता था। रोहिणी के कर्नाटक बैंक के अधिकृत आधार ऑपरेटर अफरोज के साथ मिलकर वह जन्म प्रमाण पत्र के जरिए आधार कार्ड बनाता था।
दक्षिणी जिला पुलिस ने कई साल से दिन-रात इसी काम में जुटे कंप्यूटर एक्सपर्ट सहित 11 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा है। उपायुक्त ने बताया कि हाल के दशक से आरोपी जंगल के रास्ते भारत की सीमा में प्रवेश कराते हैं और पहले से तैयार फर्जी पेपर, सिम व नकदी हाथ में देने के बाद लोकल परिवहन या लोकल मॉड्यूल की बाइक आदि से नजदीकी रेलवे स्टेशन पहुंचा दिया जाता है, जहां से वे सीधे दिल्ली आकर उतरते हैं और यहां के लोकल नेता उनका नाम वोटर लिस्ट में डलवाकर तीन मकसद पूरे करते हैं। एक- अपने मन की सरकार बनाने का, दूसरा- गजवा-ए-हिंद काऔर तीसरा- भीड़ के मनमाने इस्तेमाल का।
इन्हें अगर बंगाल आदि सीमा पर नहीं रोका जा पा रहा है तो दिल्ली उतरने के पहले रोककर जीआरपी व आरपीएफ देश की बड़ी मदद कर सकती है। अधिकारी ने बताया कि आरोपी ठेकेदार मजहब का हवाला देकर कंप्यूटर ऑपरेटर को महज सात रुपए प्रति कार्ड हिसाब देते थे, जबकि उसका कहना था कि खतरा ज्यादा है और कमाई बहुत कम। इसी कारण हत्या हुई थी। रुपयों का पूरा लेन-देन यहां से लेकर बांग्लादेश तक ऑनलाइन है। जांच में पता चला कि जनता प्रिंट्स साइट पर महज सात रुपए की फीस में जन्म, जाति व आय प्रमाण पत्र, कोविड सर्टिफिकेट आदि बनाए जाते हैं। इसी पर घुसपैठियों के फर्जी प्रमाण पत्र बनाए जा रहे थे।
साइट पर क्यूआर कोड के जरिये पेमेंट लिंक था, जो मो. चांद के नाम पर है। उसके खाते में भुगतान जाता है, जो दो फीसदी कमीशन काटकर सद्दाम हुसैन के खाते में भेज देता था। इससे पुलिस उत्तम नगर निवासी चांद तक पहुंची। चांद को विकास नगर से और उसके साथी सद्दाम को उत्तम नगर से पकड़ा गया। उसकी निशानदेही पर साइट चलाने वाले दीपक मिश्रा को अंबाला से और उसके साथी सोनू को नोएडा से गिरफ्तार किया गया। नोएडा में साइबर कैफे चलाने वाले सोनू ने वेबसाइट बनाई थी। उसने पोर्टलवाला डॉट कॉम व पोर्टलवाले डॉट ऑनलाइन बनाने की बात भी कबूली है। उधर, एटीएस की अलीगढ़ यूनिट द्वारा गिरफ्तार किए गए बांग्लादेशी दंपति सिराज और हलीमा ने बताया कि वे बैनाफुल बॉर्डर से घुसपैठ करके आए थे।
उनके प्रोफाइल का अंदाजा इसी से मिलता है कि दोनों दुबई, सऊदी अरब आदि कई देशों की यात्राएं कर चुके हैं। वे कूटरचित दस्तावेजों से खुद को भारतीय बताकर लोकल मदद से कुतुबपुर की नगला आशिक अली रोड पर रह रहे थे। वे बैंक खाता ही नहीं, बल्कि भारतीय पासपोर्ट भी बनवा चुके थे। इसी पासपोर्ट से बांग्लादेश की यात्रा भी की थी। नवी मुंबई में 13 बांग्लादेशी हुए हैं। इनमें आठ महिलाएं और दो पुरुष हैं। असममें तो अभियान कई साल से लगातार चलता ही रहता है। हालांकि अभी दिसंबर मध्य में जो 16 गिरफ्तार हुए हैं, फिलहाल उन्हीं के इनपुट पर देशभर में कार्रवाई चल रही है। असम का अनुसरण करने में देश के दूसरे राज्यों ने बहुत देर कर दी है। इसका नतीजा है कि दर्जनों चुनाव क्षेत्रों में प्रभावी स्थिति में पहुंच चुके हैं तो सैकड़ों जगह अपराधों को अंजाम देने में भी बराबर नाम आता रहा है।
साथ ही आतंकी समूह भी इनकी मदद लेने के लिए तत्पर रहते हैं। गिरफ्तारी की संख्या रोज बढ़ रही है, क्योंकि देशभर में उनके खिलाफ एक माहौल बन गया है। साधु चिन्मय को जमानत नहीं देने पर इस्कॉन ने दुःख जताया है तो बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीना सीकरी ने निराशा में कहा कि दोबारा इंकार न्याय का उपहास है। इस बीच दोनों देशों ने एक-दूसरे के 90 व 95 मछुआरों को छोड़ने का फैसला किया है, फिर भी तल्खी कम होने का नाम नहीं ले रही है। विदेश राज्य मंत्री ने संसद में बताया कि पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, 2022 में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर 47 हमले हुए थे तो पाक में 241। 2023 में क्रमशः 302 व 103 और 2024 में 2200 व 112। इस तरह पाक पीछे छूट गया है। ममता बनर्जी ने कहा है कि राज्य को अस्थिर करने के लिए केंद्र बीएसएफ के जरिए घुसपैठ करा रही है व पता लगाने के लिए डीजीपी को पत्र लिखा है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि बंगाल घुसपैठियों की नर्सरी बन गया है। ममता को देश से माफी मांगनी चाहिए। देश भर में उबाल के चलते लखनऊ की मेयर ने घुसपैठियों का पता लगाने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है और वास्तविक पहचान पर जोर दिया है क्योंकि सिस्टम ने मान लिया है कि सभी के पास भारतीय प्रपत्र हैं। लखनऊ में दो लाख घुसपैठियों का अनुमान है। तसलीमा नसरीन ने पूरे मामले की निंदा की है।
प्रत्यर्पण संधि और उसके प्रावधान
हम तो शरणागत त्राहिमाम की अपनी सनातन परंपरा पर चल रहे हैं पंडित जवाहर लाल नेहरू के ही जमाने से। दलाईलामा, शेख हसीना व उनकी बहन (1975), तसलीमा नसरीन व शेख हसीना (2024) के उदाहरण सामने हैं। इसी कारण भारत से तनाव बढ़ाने में बांग्लादेश ने कोई कसर नहीं छोड़ी है व रोज ही कुत्सित प्रयास भी कर रहा है। बकवास और बद्तमीजी के क्रम में बागी बच्चे हसीना के प्रत्यर्पण की बात कर रहे हैं। इस सिलसिले में राजनयिक नोट भारत को मिला है। चूंकि दोनों देशों में 2013 से ही प्रत्यर्पण संधि अस्तित्व में है, सो भारत के लिए ऊहापोह की स्थिति बननी तय है। मामला रूस समर्थित न्यूक्लियर पावर प्लांट से जुड़े करीब पांच अरब डॉलर के गबन का है। एंटी करप्शन कमीशन ने इसी की जांच शुरू की है।
जांच के दायरे में अमेरिका में रह रहे हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय व भांजी-भतीजी ट्यूलिप सिद्दीक हैं, जो कि ब्रिटेन सरकार में मंत्री भी हैं। इतने गंभीर मामले में भी भारत का मौन कुंठित करता है। अंतरिम सरकार ने कूटनीतिक संदेश में न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का तर्क दिया है। दूसरी ओर, रूसी निकाय ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि अपनी परियोजनाओं में खुलेपन की नीति पर प्रतिबद्ध है। उधर, बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने हसीना और कई पूर्व मंत्रियों, सलाहकारों, सैन्य व प्रशासनिक अफसरों के खिलाफ मानवता के विरुद्ध अपराध एवं नरसंहार का आरोप लगाते हुए गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं। वैसे, दुनिया देख चुकी है कि पांच अगस्त को कैसी न्यायिक प्रक्रिया के तहत प्रधानमंत्री आवास को घेरकर लूटा गया था?
यह भी देखा कि किस तरह वहां के उच्च न्यायालय को उन्मादी भीड़ ने घेर कर जजों से इस्तीफे ले लिए थे? हजारों अल्पसंख्यक सरकारी कर्मियों को भी मार-पीट कर इस्तीफे लिए गए व उनके घर, पूजा स्थल, मकान, दुकान और प्रतिष्ठान फूंक दिए गए। साधु चिन्मयदास को कैसे फंसाया गया और वकीलों तक ने मुकदमा लड़ने से मनाकर दिया? उनकीगिरफ्तारी के बाद एक बार फिर अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ गए हैं।
बांग्लादेश के ध्वज के अपमान के कारण देशद्रोह के आरोप में ढाका एयर पोर्ट से गिरफ्तार कर उन्हें चटगांव की कोर्ट में पेश किया गया था, जहां मुश्किल से एक वकील खड़े होते हैं, जिन्हें उन्मादी भीड़ ने मार दिया। अब कोई मदद करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है, जबकि करीब पौने दो सौ भारतीय एवं विदेशियों के हत्यारे मुंबई हमले के आरोपी आतंकी कसाब को भारत में वकील मिल जाता है और जूता छोड़िए, कोई उस पर स्याही तक नहीं फेंकता है। बांग्लादेश के सत्ता प्रतिष्ठान में हसीना के प्रति जो नफरत देखी जा रही है, उससे कम से कम न्याय की उम्मीद तो नहीं ही है। पाक के रास्ते पर है वह, जहां एक प्रधानमंत्री की हत्या हुई, दूसरे को फांसी व तीसरा जेल में है।
इंसानियत व राजनय का यही तकाजा है कि बांग्लादेश में चुनी हुई सरकार बनने तक शेख हसीना को नहीं लौटाना चाहिए, क्योंकि अभी तो भीड़तंत्र व सांप्रदायिक रोष का शासन चल रहा है। संधि के प्रावधान भी भारत को इनकार करने का हक देते हैं। यह भारत पर निर्भर करता है कि वह प्रत्यर्पण संधि माने या न माने, क्योंकि मांगने के बावजूद उल्फा के अनेक आतंकियों को हसीना ने भारत को नहीं सौंपा था। विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक मामलों में प्रत्यर्पण संधि का क्रियान्वयन आसान नहीं है। नियम छह में कहा गया है कि अगर आरोप राजनीतिक प्रकृति के हों तो कोई भी पक्ष प्रत्यर्पण से इंकार कर सकता है। हसीना ने इसी की आड़ लेकर कई बार मांगने पर भी 16 साल में कभी परेश बरुआ को नहीं लौटाया। अब उसके प्रति बांग्लादेश की उदारता भारत की चिंता बढ़ा रही है। नियम आठ में प्रावधान है कि यदि किसी देश को लगता है अपराधी संग उसके देश में न्याय होने के हालात नहीं हैं तो ऐसे में भी प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है।