सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बेहद महत्व

तुलसी विवाह का पर्व विशेष रूप से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, जिसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के निद्रा से जागने के बाद शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी माता का विवाह करने की परंपरा है, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन को लेकर विशेष रूप से कुछ शुभ संयोग बनते हैं, जैसे सर्वार्थ सिद्धि, रवि योग और हर्षण योग, जो जीवन में समृद्धि और सुख-शांति के आगमन का संकेत देते हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, तुलसी विवाह से जीवन में आर्थिक समृद्धि और बरकत का आगमन होता है। इसे करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख, शांति और वैभव बढ़ता है। इस दिन कुछ विशेष चीजों का दान करना भी बेहद शुभ माना जाता है।

इस दिन वस्त्र, अन्न व आभूषण का दान करना शुभ माना गया है। माना जाता है कि व्यक्ति को उन्नति प्राप्त होती है। जीवन में आर्थिक संपन्नता आने लगती है।

– सनातन धर्म में कन्या दान सबसे बड़ा दान माना जाता है। इस दिन तुलसी माता को अपनी बेटी मानकर विधि-विधान के साथ कन्या दान करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा से मनोवांछित फल प्राप्त होती है।

– इस दिन तुलसी विवाह करने के साथ ही एकादशी का व्रत भी करें। आप धान, मक्का, गेहूं, उड़द, बाजरा व चावल आदि का दान अत्यंत शुभ होता है। ऐसा करने से जीवन से सुख-शांति और खुशहाली बनी रहती है।

– तुलसी विवाह के दिन गुड़ का दान करना शुभ होता है। माना जाता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

– तुलसी विवाह पर सिघाड़ा, शकरकंदी व मौसमी फलों का दान करना शुभ होता है। ऐसा करने से श्री विष्णु व माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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