शरद पूर्णिमा का पर्व सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है, खासकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के प्रति समर्पित है। यह पर्व आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे खासतौर पर साधकों द्वारा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।
जानें शरद पूर्णिमा के बारे में
सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित है। आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस पर्व को साधक अधिक उत्साह के साथ मनाते हैं। साथ ही शुभ मुहूर्त में गंगा स्नान और दान करते हैं। इसके बाद विधिपूर्वक विष्णु जी की उपासना करते हैं। धार्मिक मत है कि ऐसा करने से जातक को जीवन में शुभ फल मिलता है। इसके अलावा कार्यों में आ रही रुकावट से छुटकारा मिलता है। पंडितों के अनुसार इस दिन रात के समय चंद्रमा की रोशनी में खीर रखकर छोड़ दी जाती है। मान्यताओं अनुसार इस खीर का सेवन करने से स्वास्थ्य को काफी लाभ मिलता है। शरद पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और विशेष पूजा-पाठ करने की परंपरा है।
शरद पूर्णिमा: मान्यताएं
शरद पूर्णिमा का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है, जहां चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि इस रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों से पूछती हैं, “कोजागर्ति?” यानी “कौन जाग रहा है?”
इस दिन की विशेषताएं
- खीर का भोग: इस रात चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाती है, जिसे अगले दिन सेवन किया जाता है। इसे खाने से व्यक्ति के सौभाग्य में वृद्धि होती है और यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।
- औषधीय गुण: इस रात की चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं, जो कई बीमारियों में राहत प्रदान करती हैं।
- श्रीकृष्ण की लीला: मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसलिए, यह रात विशेष रूप से भक्तों के लिए महत्व रखती है।
शुभ कार्य करने की विधि
- चंद्रमा की पूजा: पूर्णिमा की रात चंद्रमा की पूजा करें और खीर का भोग अर्पित करें। इससे चंद्र के दोष कम होते हैं।
- लक्ष्मी पूजा: देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा करें। श्रीसूक्त और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।
- दान-पुण्य: जरूरतमंदों को दान दें। अनाज, कपड़े और पढ़ाई की चीजें दान करें। गायों की देखभाल के लिए भी धन का दान करें।
- गृहस्थ जीवन में सुख-समृद्धि: इस रात विशेष रूप से देवी लक्ष्मी से समृद्धि की प्रार्थना करें।
शरद पूर्णिमा 2024 का शुभ मुहूर्त
16 अक्टूबर 2024 को शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। चांद शाम 5:05 बजे निकलेगा और सूर्यास्त 5:50 बजे होगा। इस दिन रवि योग और ध्रुव योग भी महत्वपूर्ण हैं।इस पर्व के माध्यम से आप अपनी जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि को आमंत्रित कर सकते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि विशेष पूजा-पाठ और दान-पुण्य से आपके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहेगी
रवि योग में शरद पूर्णिमा 2024
इस साल की शरद पूर्णिमा रवि योग में है, शरद पूर्णिमा के दिन रवि योग सुबह में 6 बजकर 23 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। वहीं ध्रुव योग सुबह में 10 बजकर 10 मिनट तक होगा, उसके बाद से व्याघात योग रहेगा।
शरद पूर्णिमा का महत्व
- लक्ष्मी पूजन: इस दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है, जिससे घर में धन और समृद्धि का आगमन होता है।
- उपवास: कई लोग इस दिन उपवास रखते हैं और रात को चंद्रमा की किरणों में खीर का भोग लगाते हैं, जो विशेष रूप से इस पर्व का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
- गंगा स्नान: इस दिन गंगा स्नान करने का महत्व है, जिससे पवित्रता और शुद्धता प्राप्त होती है। दान-पुण्य भी इस दिन खास माना जाता है।
पूजा विधि
- स्नान और शुद्धिकरण: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- मंदिर या घर में पूजा स्थान तैयार करें: एक साफ स्थान पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें।
- दीप जलाएं: पूजा के स्थान पर दीप जलाएं और इत्र या धूप का उपयोग करें।
- नैवेद्य चढ़ाएं: मां लक्ष्मी को खीर का भोग अर्पित करें। यह विशेष रूप से इस दिन का एक अनिवार्य भाग है।
- आरती: पूजा के बाद आरती करें और भगवान का धन्यवाद करें।
- दान: दिन के अंत में गरीबों या ब्राह्मणों को दान करें, जो इस पर्व की परंपरा का हिस्सा है।
उपसंहार
शरद पूर्णिमा का पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह दिन समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति का प्रतीक है। इस दिन विशेष रूप से की गई पूजा और दान का फल जीवन में शुभता और समृद्धि लाता है।