प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के 10 साल पूरे होने को है और अबकी बार 400 पार के नारे के साथ एनडीए तीसरे कार्यकाल के लिए अपना दावा कर रही है। वहीं इंडिया गठबंधन के 295 सीट के अपने दावे हैं। शुरुाती रूझानों में एनडीए की सरकार को बहुमत दिखाया जा रहा है। लेकिन इंडिया गठबंधन भी 200 के आंकड़े को पार करता नजर आ रहा है। सात दशकों से अधिक वर्षों में देश ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों से भरी यात्रा के दौरान 15 प्रधानमंत्रियों को देखा है। एक बार फिर 18वीं लोकसभा का नेतृत्व किस दल या गठबंधन के पास होगा ये शाम तक साफ हो जाएगा। लेकिन आज आपको हम इन चुनावों या उसके आने वाले नतीजों को लेकर कुछ भी नहीं बताने जा रहे हैं। बल्कि आज आपको चुनाव के इतिहास में लेकर जा रहे हैं।
यूं तो विधिवत गठन 1951-52 के चुनाव से हुआ था लेकिन इसके पहले इसे संविधान सभा के नाम से जाना जाता था। तब भारत का संविधान गढ़ा गया और लोकसभा बनकर उन्हीं विधानों में अनेक संशोधन हुए। आजाद भारत में पहले आम चुनाव 1951-52 की सर्दियों में कराए गए। इसी पहले चुनाव ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्थापित कर दिया। देश का पहला आम चुनाव 68 चरणों में कराया गया था। 1951-52 में चार महीनों में आयोजित भारत के पहले लोकसभा चुनाव ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू की जिसके द्वारा नव स्वतंत्र राष्ट्र की बागडोर उसके लोगों के हाथों में सौंप दी गई। देशभर की 489 लोकसभा और 3,283 राज्य विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले गए।
13 फरवरी, 1952 को अपने रिपब्लिकन संविधान के तहत हुए पहले आम चुनावों में भारत ने अगले पांच वर्षों के लिए कांग्रेस सरकार को चुना। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व संचार मंत्री रफी अहमद किदवई का लोक सभा के लिए चुनाव परिणामों के मुख्य आकर्षणों में से एक था। प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में परिणाम जानने के लिए सुबह से ही इलाहाबाद की जिला अदालतों के परिसर में लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई थी। प्रधान मंत्री अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र इलाहाबाद से लोक सभा के लिए चुने गए, उन्होंने चार विरोधियों को 105,462 मतों से हराया। नेहरू को 233,571 वोट मिले। ये सामान्य सीट के लिए पड़े वोटों का 64% से अधिक रहा। माना जाता है कि यह देश में अब तक के चुनावों में किसी भी उम्मीदवार द्वारा प्राप्त सबसे अधिक वोट हैं।
देश के पहले आम चुनाव में आजादी की लड़ाई का दूसरा नाम बनी कांग्रेस ने 364 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया। देश के पहले आम चुनाव के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव भी कराए गए थे। कांग्रेस को 3280 में से 2247 सीटें मिली थी। पंडित नेहरू की देशभर में लहर थी। इसके बावजूद उनके 28 कैबिनेट मंत्री चुनाव हार गए थे। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी शामिल थे। बाबा साहब आंबेडकर को भी हार का सामना करना पड़ा था।