लोकसभा चुनाव से चंद दिन पहले ही पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। कांग्रेस की सरकार में वह कई मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुके हैं। सुरेश पचौरी लगातार चार बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। नहीं आप कांग्रेस का दामन छोड़कर उन्होंने बीजेपी का हाथ थामा है। शनिवार 9 मार्च को भोपाल स्थित बीजेपी दफ्तर में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुरेश पचौरी का स्वागत किया। इसके बाद उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई गई।
मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा ने सुरेश पचौरी को पार्टी में शामिल करने के दौरान कहा कि सुरेश मध्य प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के संत रहे हैं। कांग्रेस में ऐसी व्यक्ति के लिए स्थान नहीं है इसलिए उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उन्हें काम करना चाहिए। यही कारण है कि वह बीजेपी में शामिल हो गए हैं। बता दें कि अकेले सुरेश पचौरी की बीजेपी में शामिल नहीं हुए हैं बल्कि उनके साथ कई अन्य लोग भी भाजपा के साथ जुड़ गए हैं।
इस सूची में धार से पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी, इंदौर से पूर्व विधायक संजय शुक्ला, पिपरिया से पूर्व विधायक विशाल पटेल, अर्जुन पालिया, एनएसयूआई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अतुल शर्मा का नाम शामिल है। वहीं लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा कांग्रेस को लगातार झटका दे रही है जिसे कांग्रेस की मुश्किलें भी लगातार बढ़ती जा रही है। बता दें कि सुरेश पचौरी ने 1972 में कांग्रेस के साथ जुड़ने का फैसला किया था। वो कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी के साथ जुड़े थे। इसके बाद वो केंद्रीय मंत्री, मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद भी रह चुके है।
सुरेश पचौरी ने 1972 में एक युवा कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। वर्ष 1984 में वो राज्य युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे। इसके बाद 1990, 1996 और 2002 में भी वो राज्यसभा पहुंचे थे। वो कांग्रेस सरकार में कई बार केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे। उन्होंने रक्षा, कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत, पेंशन, संसदीय मामले, समेत कई मंत्रालयों में काम किया है।
सुरेश पचौरी ऐसे नेता रहे जो पार्टी में तो मजबूत स्थिति बनाने में सफल रहे मगर चुनाव के मैदान में वो बाजी नहीं मार सके। सुरेश पचौरी ने राजनीतिक करियर में दो बार चुनाव लड़ा और दोनों ही बार वो हार गए। सबसे पहले 1999 में वो भोपाल लोकसभा सीट से मैदान में उतरे जहां उमा भारती ने उन्हें चुनौती दी। वो 1.6 लाख वोटों से हारे थे। इसके बाद 2013 में वो भोजपुर से चुनाव मैदान में उतरे और सुरेंद्र पटवा के खिलाफ चुनाव नहीं जीत सके।