लम्बे समय से जेल में निरुद्ध होना मात्र, जमानत का आधार नहीं

अजय कुमार सिंह-

प्रयागराज ब्यूरो : इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने अंडर ट्रायल अभियुक्त की जमानत याचिका ख़ारिज करते हुए कहा है कि लम्बे समय तक जेल में निरुद्ध होना मात्र जमानत का आधार नहीं होता | कोर्ट ने कहा कि लम्बे समय तक जेल में निरुद्ध होना जमानत का एक आधार हो सकता है | लेकिन यह मामले के तथ्यों व परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है | दरअसल, अभियुक्त वर्ष 2017 में एक 8 वर्ष की बच्ची के साथ ओरल सेक्स करने का आरोपी है | उस समय बच्ची के माता – पिता अभियुक्त के घर में किरायेदार थे | कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभियुक्त के अधिवक्ता ने दलील देते हुए कहा कि यह मामला वर्ष 2017 का है और अभियुक्त एक सितम्बर-२०१७ से जेल में निरुद्ध है | ऐसे में अभियुक्त के काफी समय से जेल में निरुद्ध होने के कारण जमानत का आधार बनता है | साथ ही अधिवक्ता ने यह भी कहा कि वर्तमान में माकन मालिक व किरायेदार के बीच विवाद का भी मामला है | वहीं राज्य सरकार कि ओर से जमानत का विरोध किया गया | जिसपर दोनों पक्षों की दलीलों को ख़ारिज करते हुए एकल पीठ ने कहा कि पाक्सो की धारा-4(2) के अंतर्गत 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन अपराध के मामले में न्यूनतम बीस वर्ष की सजा का प्रावधान है  

Related Articles

Back to top button