नई दिल्ली। पाकिस्तान के हैदराबाद के फलीली इलाके की गफूर शाह कॉलोनी में सुबह होते ही लड़के-लड़कियां अपने कंधों पर बस्ता टांग कर मंदिर की ओर चल देते हैं। मंदिर तो पूजा करने की जगह होती है। मगर सोनारी बागड़ी ने इस मंदिर को स्कूल में तब्दील कर दिया है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक सोनारी बागड़ी अपने परिवार में पहली और कबीले की उन कुछ महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की है और अब उन्होंने स्वयं को बच्चों को शिक्षित करने के लिए समर्पित कर दिया है। सोनारी सिंध की बागड़ी क़बीले से हैं, जहां शिक्षा को ज़्यादा तवज्जों नहीं दिया जाता है। महिलाओं सहित इस कबीले के ज़्यादातर लोग खेती या अंशकालिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। बागड़ी एक ख़ानाबदोश कबीला है। ये कबीला काठियावाड़ और मारवाड़ से सिंध में दाख़िल हुआ था। बागड़ी शब्द का प्रयोग भारतीय राज्य राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में रहने वाले हर एक हिंदू राजपूत के लिए किया जाता है। गुरदासपुर के बागड़ी सुलहेरिया हैं, जो अपने कबीले को बागड़िया या भागड़ कहते हैं। यह कबीला अलाउद्दीन ग़ौरी के दौर में दिल्ली से पलायन करके आने वाले राजपूतों में से एक है। आज भी, इस कबीले की मुखिया पुरुष के बजाय महिला होती है, जो घर के सभी मामले देखती हैं। कबीले में ज़्यादातर पुरुष और महिलाएं एक साथ काम या मज़दूरी करते हैं।