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समुन्द्र मंथन के रत्नों में एक रत्न कामधेनु गाय भी है

समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र से 14 रत्न निकाले थे। समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में एक रत्न कामधेनु गाय भी है। वहीं हिंदू धर्म में गाय को माता के रूप में माना और पूजा जाता है। कामधेनु गाय को दिव्य गाय माना जाता है, यह गाय किसी भी तरह की मनोकामना को पूरी करने वाली होती है। साथ ही यह गाय बेहद शक्तिशाली होती है और इसके शरीर में देवी-देवता निवास करते हैं। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कामधेनु गाय की कुछ विशेषताओं के बारे में बताने जा रहे हैं।

क्यों थी इतनी खास

बता दें कि कामधेनु गाय सफेद रंग की है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस गाय का मुख महिला के समान था और शरीर गाय की तरह था। देवताओं और दानवों ने मिलकर जब समुद्र मंथन किया था, तो समुद्र से 14 रत्न निकले थे। जिसमें से एक रत्न कामधेनु गाय थी। यह गाय इतनी दिव्य थी कि किसी भी इच्छा को पूरी कर सकती थी। कामधेनु गाय का स्थाई निवास स्वर्ग है। हालांकि जिसके पास भी यह गाय होती थी, उसको सबसे अधिक शक्तिशाली माना जाता था। मान्यता तो यह भी है कि कामधेनु गाय के दर्शन से ही सभी दुखों का अंत हो जाता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक सबसे पहले ऋषि वशिष्ठ के पास कामधेनु गाय था। एक बार ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में राजा विश्वामित्र अतिथि बनकर आए। तब ऋषि वशिष्ठ ने कामधेनु गाय की मदद से राजा के सत्कार के लिए अनेकों व्यंजन बनाएं। यह देखकर राजा विश्वामित्र दंग रह गए। क्योंकि ऋषि जो व्यंजन उनको खिला रहे थे, वह महलों में भी मिलने मुश्किल थे। तब राजा ने ऋषि से पूछा कि यह व्यंजन कहां से आए, तो ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें कामधेनु गाय के बारे में बताया।

कामधेनु गाय की दिव्यता को सुन राजा के मन में गाय को पाने की इच्छा प्रकट हुई। तब राजा ने ऋषि से इस गाय को मांगा। लेकिन ऋषि वशिष्ठ ने राजा विश्वामित्र को गाय देने से मना कर दिया। जिस पर राजा विश्वामित्र ने ऋषि पर आक्रमण कर दिया। राजा और ऋषि को युद्ध करता देख कामधेनु गाय को बहुत दुख हुआ और वह स्वर्ग वापस लौट गई। इसके बाद कामधेनु गाय ने स्वर्ग को अपना स्थाई निवास बना लिया।

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