देश की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण इलाके भी बढ़ा रहे योगदान

ग्रामीण क्षेत्र अब भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण और तेजी से उभरता हुआ हिस्सा बन चुका है। कृषि, ग्रामीण उद्योग, रोजगार अवसर, डिजिटलाइजेशन, और महिलाओं की भागीदारी जैसे क्षेत्रों में विकास ने इसे और अधिक आत्मनिर्भर और स्थिर बना दिया है। इसके अलावा, जब तक इन क्षेत्रों में निरंतर सुधार और नवाचार की दिशा में प्रयास किए जाएंगे, तब तक ग्रामीण इलाकों का आर्थिक योगदान और बढ़ेगा। यह समग्र राष्ट्रीय विकास के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्रों की भूमिका बढ़ रही है, जो पहले मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थी, अब अन्य क्षेत्रों में भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रही है। यह विकास ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बना रहा है, और इसके परिणामस्वरूप देश के अंदर सामाजिक-आर्थिक असमानताओं में कमी देखने को मिल रही है। भारत में अब ग्रामीण इलाके भी देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान बढ़ा रहे हैं तथा कई राज्यों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता हुआ दिखाई दे रहा है।  विभिन्न राज्यों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। कई राज्य, जो पहले आर्थिक दृष्टिकोण से पिछड़े हुए थे, अब अपनी आर्थिक वृद्धि को तेज कर रहे हैं, खासकर बुनियादी ढांचे में सुधार, औद्योगिकीकरण, और शहरीकरण के कारण। भारत के आर्थिक विकास का प्रमुख लाभ युवा वर्ग को हो रहा है, क्योंकि तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था में रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। युवाओं को अधिक रोजगार के अवसर मिल रहे हैं, और यह विकास नई तकनीकी और विनिर्माण क्षमताओं के माध्यम से भी हो रहा है। इससे, न केवल बेरोजगारी दर में कमी आई है, बल्कि युवाओं की कौशल क्षमता भी बढ़ी है, जो आने वाले समय में भारत की आर्थिक प्रतिस्पर्धा को और मजबूत करेगा।

आज भारत में केवल मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे जैसे महानगर ही देश के विकास में भागीदारी नहीं कर रहे हैं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी पर्याप्त विकास हो रहा है। इससे रोजगार के अवसर भी इन इलाकों में निर्मित हो रहे हैं। सबसे अधिक विकास आज अविकसित क्षेत्रों में हो रहा है। आज गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आदि के साथ साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, एवं नोर्थ ईस्ट के इलाके भी तेजी से विकास कर रहे हैं। विकास के कई नए क्षेत्रों का निर्माण हुआ है। पिछड़े हुए इन राज्यों में गति पकड़ रहा विकास, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में और भी अधिक वृद्धि दर्ज करने में सहायक सिद्ध होगा। ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अतुलनीय विस्तार हुआ है, जिसके चलते अब सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कार्य करने वाली कम्पनियां भी अपने संस्थानों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित हो रही हैं। विशेष रूप से दक्षिणी प्रदेशों में कुछ कम्पनियों ने इस सम्बंध में अच्छी पहल की है। प्राचीन भारत में ग्रामीण क्षेत्र ही आर्थिक विकास के मजबूत केंद्र रहे हैं। इससे इन क्षेत्रों में निवासरत नागरिकों को रोजगार के अवसर भी इनके आसपास के इलाकों में मिल जाते हैं और इन्हें शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करने की आवश्यकता ही नहीं होती है। 

कुछ राज्यों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन कई अन्य राज्य, जैसे पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, और हिमाचल प्रदेश, में बजटीय घाटे की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। इन राज्यों में एक ओर तो विकास दर कम हो रही है, वहीं दूसरी ओर मुफ्त योजनाओं और लोकलुभावन घोषणाओं की भरमार ने इन राज्यों के वित्तीय संतुलन को प्रभावित किया है। इन राज्यों में सरकारें विभिन्न प्रकार की मुफ्त योजनाओं का एलान कर रही हैं—जैसे मुफ्त बिजली, पानी, स्वास्थ्य सेवाएं, और अन्य सामाजिक कल्याण योजनाएं—जो शॉर्ट टर्म में चुनावी दृष्टिकोण से तो प्रभावी हो सकती हैं, लेकिन लंबे समय में राज्य के बजट पर भारी दबाव डालती हैं। मुफ्त योजनाओं का वित्तीय बोझ बढ़ता है, लेकिन इसके लिए राज्य के पास पर्याप्त राजस्व संसाधन नहीं होते हैं। इससे बजटीय घाटा बढ़ता है और राज्य सरकारों को कर्ज लेने की स्थिति में लाकर एक नकारात्मक आर्थिक चक्र की शुरुआत होती है। राज्य की विकास दर यदि कम हो रही है, तो यह संकेत है कि इन राज्यों में आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ रही हैं। विकास दर का कमजोर होना रोजगार सृजन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे बेरोजगारी और गरीबी की स्थिति भी बढ़ सकती है। अगर इन राज्यों के पास दीर्घकालिक विकास के लिए जरूरी निवेश और संरचनात्मक सुधार नहीं हैं, तो यह स्थिति और भी बिगड़ सकती है। जब राज्य सरकारें बढ़ी हुई खर्चों को उठाने के लिए कर्ज पर निर्भर हो जाती हैं, तो इसका असर राज्य के क्रेडिट रेटिंग पर भी पड़ता है। कर्ज में वृद्धि से भविष्य में इन राज्यों के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना महंगा हो सकता है, क्योंकि उधारी पर ब्याज दरें बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, कर्ज के बढ़ते बोझ के कारण राज्य सरकारें अपने विकास कार्यों के लिए जरूरी धनराशि में कमी का सामना कर सकती हैं।

आज भारत में 30 वर्ष के अंदर की उम्र के नागरिकों में बेरोजगारी की दर 12 प्रतिशत है, जबकि देश में कुल बेरोजगारी की दर 3.1 प्रतिशत है। अतः देश के युवाओं में बेरोजगारी की दर अधिक दिखाई देती है। देश के युवाओं में कौशल का अभाव है। इसलिए केंद्र सरकार विशेष कार्यक्रम लागू कर युवाओं में कौशल विकसित का प्रयास कर रही है। विशेष रूप से भारत में युवाओं के लिए कहा जा रहा है कि वे 30 वर्ष की उम्र तक काम करना ही नहीं चाहते हैं, क्योंकि इस उम्र तक वे रोजगार के अच्छे अवसर ही तलाशते रहते हैं। 30 वर्ष की उम्र के बाद वे दबाव में आने लगते हैं एवं फिर उन्हें जो भी रोजगार का अवसर प्राप्त होता है उसे वे स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए 30 वर्ष से अधिक की उम्र के नागरिकों के बीच बेरोजगारी की दर बहुत कम है। यह स्थिति हाल ही के समय में विश्व के अन्य देशों में भी देखी जा रही है। युवाओं की अपनी नजर में सही रोजगार के अवसर के लिए वे इंतजार करते रहते हैं, अथवा वे अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं। आज विशेष रूप से भारत में  रोजगार के अवसरों की कमी नहीं है। युवाओं में कौशल एवं मानसिकता का अभाव एवं केवल सरकारी नौकरी को ही रोजगार के अवसर के लिए चुनना ही भारत में श्रम की भागीदारी में कमी के लिए जिम्मेदार तत्व हैं। अधिक डिग्रीयां प्राप्त करने वाले युवा रोजगार के अच्छे अवसर तलाश करने में ही लम्बा समय व्यतीत कर देते हैं। कम डिग्री प्राप्त एवं कम पढ़े लिखे नागरिक छोटी उम्र से ही रोजगार प्राप्त कर लेते हैं। यह भी कटु सत्य है कि डिग्री प्राप्त करने एवं वास्तविक धरातल पर कौशल विकसित करने में बहुत अंतर है। आज भी भारत में कई कम्पनियों की शिकायत है कि देश में इंजीनीयर्स तो बहुत मिलते हैं परंतु उच्च कौशल प्राप्त इंजीनीयर्स की भारी कमी हैं।

ग्रामीण क्षेत्र अब भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण और तेजी से उभरता हुआ हिस्सा बन चुका है। कृषि, ग्रामीण उद्योग, रोजगार अवसर, डिजिटलाइजेशन, और महिलाओं की भागीदारी जैसे क्षेत्रों में विकास ने इसे और अधिक आत्मनिर्भर और स्थिर बना दिया है। इसके अलावा, जब तक इन क्षेत्रों में निरंतर सुधार और नवाचार की दिशा में प्रयास किए जाएंगे, तब तक ग्रामीण इलाकों का आर्थिक योगदान और बढ़ेगा। यह समग्र राष्ट्रीय विकास के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन सकता है। युवाओं को सरकारी नौकरी की चाहत को छोड़कर निजी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करने के प्रयास करने चाहिए। साथ ही आज युवाओं को अपने स्वयं के व्यवसाय प्रारम्भ करने के प्रयास भी करने चाहिए। भारत के ग्रामीण इलाकों में अब एक नई आर्थिक स्फूर्ति आई है। कृषि में सुधार, डिजिटलकरण, स्वयं सहायता समूहों, और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में वृद्धि ने इन क्षेत्रों को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करने की दिशा में प्रेरित किया है। इन क्षेत्रों में निरंतर सुधार और निवेश के साथ, ग्रामीण भारत की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो सकती है, और यह समग्र राष्ट्रीय विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण ताकत बन सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण इलाकों का बढ़ता योगदान अब एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक बदलाव के रूप में सामने आ रहा है। पारंपरिक रूप से भारत की अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा शहरी क्षेत्रों से जुड़ा हुआ था, लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी आर्थिक गतिविधियां तेज़ी से बढ़ रही हैं और इनका योगदान देश की समग्र आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण बन गया है। इसके कई कारण हैं, जिनमें कृषि, छोटे उद्योगों का विकास, डिजिटल तकनीक का विस्तार, और रोजगार के अवसरों में वृद्धि शामिल हैं।

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