तारिक मंसूर और अब्दुल्ला कुट्टी बने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, BJP की केंद्रीय टीम में मुस्लिम नेताओं के मायने क्या?

बीजेपी ने तारिक मंसूर और अब्दुल्ला कुट्टी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया है. लोकसभा चुनावों से 9 महीने पहले दो मुस्लिम चेहरों को पार्टी के केंद्रीय संगठन में जगह देने से पार्टी की आगामी रणनीति झलक दिखाई दे रही है.लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लगी भारतीय जनता पार्टी ने केंद्रीय संगठन के नए पदाधिकारियों के नाम का ऐलान किया है. इस लिस्ट में बीजेपी ने 13 राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए हैं, जिनमें दो मुस्लिम समुदाय से हैं. तारिक मंसूर उत्तर भारत में बीजेपी का उभरता मुस्लिम चेहरा हैं, तो दक्षिण भारत में अब्दुल्ला कुट्टी एक बड़ा मुस्लिम नाम हैं. इन दोनों को ही बीजेपी ने पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया है. इस फैसले के पीछे जानकार बीजेपी की उस रणनीति को कारण बता रहे हैं, जिसके तहत बीजेपी मुस्लिम समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है.

भारतीय जनता पार्टी को सवर्ण हिंदुओं की पार्टी कहा जाता था, इस छवि को पहले 2014 फिर 2019 के लोकसभा चुनावों के नतीजों ने काफी हद तक बदला. अब बीजेपी प्रो-हिंदुत्व से आगे बढ़कर विकासशील और राष्ट्रवादी दल की छवि गढ़ने की कोशिश में है. इसी कोशिश के मद्देनजर पार्टी पसमांदा मुसलमानों को बीजेपी से जोड़ने की कोशिश कर रही है. इससे पार्टी के हिंदुत्व के कोर आइडिया को भी नुकसान नहीं हो रहा और केंद्र की योजनाओं का लाभ पाने वाला एक बड़ा समुदाय भी उससे जुड़ रहा है.

बीजेपी की योजनाओं के लाभार्थी पसमांदा

बीजेपी का मानना है कि मुस्लिम समुदाय में एलीट माने जाने वाले अशरफ समाज के लोग ही पार्टी के आलोचक रहे हैं. वहीं इनसे अलग पसमांदा समाज अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के चलते किसी भी उस दल के साथ जुड़ सकता है, जो उनके आर्थिक-सामाजिक लाभ के लिए काम करने की बात करता है. पसमांदा शब्द मुस्लिम समुदाय के उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो जाति और काम के आधार पर पिछड़े रह गए. इनमें वो लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म से इस्लाम में धर्मांतरण किया था.

ये समाज लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़ा रहा, लेकिन जब कांग्रेस पार्टी का पतन शुरू हुआ तो बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ ये समाज चला गया. वहीं बीजेपी का मानना है कि उनकी सरकारों का लाभ पाने वालों में पसमांदा मुसलमानों की संख्या अच्छी खासी है. उत्तर प्रदेश में ही प्रधानमंत्री आवास योजना में 35 फीसदी, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना में 37 फीसदी और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में 30 फीसदी लाभार्थी पसमांदा समाज से ही हैं.

अशरफ को छोड़ पसमांदा पर BJP की नजर

अंसारी, सैफी, सलमानी और कुरैशी पसमांदा मुसलमान समुदाय की वो जाति हैं, जिन्होंने पिछले कुछ दशकों में आर्थिक तौर पर तरक्की की है. मुस्लिम समुदाय की कुल आबादी का 85 फीसदी पसमांदा समाज से है, लेकिन फिर भी इनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व काफी कम है. ऐसे में बीजेपी ने पसमांदा समाज से आने वाले तारिक मंसूर को आगे बढ़ाना शुरू किया है. इसी साल बीजेपी ने कुरैशी समाज से आने वाले तारिक मंसूर को उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य बनाया. अब उन्हें पार्टी ने उपाध्यक्ष बनाकर पसमांदा समाज को साधने की अपनी कवायत को एक कदम और आगे बढ़ाया है.

पिछले कुछ दिनों में अशरफ समुदाय के मुस्लिम नेताओं को पार्टी के पदों से हटाकर पसमांदा समाज के नेताओं को आगे बढ़ा बीजेपी ने अपनी इस रणनीति को और भी साफ किया है. पार्टी ने मुख्तार अब्बास नकवी, एमजे अकबर और सय्यद जफर इस्लाम को फिर से संसद नहीं भेजा. शहनवाज हुसैन को संसदीय दल में जगह नहीं दी. ये सभी नेता मुस्लिम तो थे, लेकिन अशरफ समाज के मुसलमान थे. बीजेपी ने इनकी जगह पार्टी में पसमांदा मुस्लिम नेताओं को तवज्जो दी. गुलाम अली खटाना को राज्यसभा भेजा. वहीं उत्तर प्रदेश में सय्यद मोहसिन रजा की जगह पसमांदा मुसलमान वर्ग से आने वाले दानिश अंसारी को योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री बनाया. अब इस कड़ी में तारिक मंसूर अगला नाम हैं.

बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर तारिक मंसूर के अलावा अब्दुल्ला कुट्टी का नाम भी आता है. कुट्टी के जरिए बीजेपी दक्षिण भारत में संभावनाएं तलाश रही है. पिछले लोकसभा चुनावों की बात करें तो दक्षिण भारत की 88 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ 28 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी. इनमें से 25 सीटें तो सिर्फ कर्नाटक में ही मिलीं. ये आकंड़ा इस बात का गवाह है कि बीजेपी की दक्षिण भारत के राज्यों में उपस्थिति न के बराबर है. केरल में बीजेपी काफी समय से उपस्थिति दर्ज कराने के प्रयास में है, लेकिन सफलता अभी हासिल नहीं हुई है. अब बीजेपी कुट्टी के जरिए केरल में अपने हित साधने की कोशिश में है.

कौन हैं अब्दुल्ला कुट्टी?

अब्दुल्ला खुद को प्रोग्रेसिव सोच वाले मुस्लिम बताते हैं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीतिक जीवन का आगाज करने वाले अब्दुल्ला कुट्टी ने 1999 और 2004 में कांग्रेस के दिग्गज नेता मुल्लापल्ली रामचंद्रन को हराया और लगातार 10 साल तक कुन्नूर से लोकसभा सांसद रहे. तब उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज की तारीफ की तो CPIM ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया.

CPIM से निकाले जाने के बाद कुट्टी कांग्रेस पार्टी से जुड़े और दो बार कुन्नूर से विधायक चुने गए. हालांकि साल 2016 में थालासेरी विधानसभा सीट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद एक बार फिर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों की तारीफ की और उन्हें गांधीवादी बताया. इसबार ऐसा करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया. इसके बाद जून 2019 में बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा ने कुट्टी को बीजेपी में शामिल कराया.

केरल में संभावना तलाश रही बीजेपी ने 2019 के आखिर में कुट्टी को केरल बीजेपी का उपाध्यक्ष बनाया था. अगले साल ही सितंबर महीने में कुट्टी को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया. अब एक बार फिर बीजेपी ने उनपर भरोसा जताया है और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर बरकरार रखा है. बीजेपी से जुड़ने के बाद अब्दुल्ला कुट्टी ने कहा था कि वो एक राष्ट्रीय मुस्लिम हैं. उन्होंने कहा था एक मुसलमान होने के तौर पर देशभक्त होना मेरा धर्म है. उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में मुस्लिम समुदाय के बीच बीजेपी को लेकर बने पूर्वाग्रहों को बदलना उनका काम है और वो इसे करेंगे.

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